Biography of Barrister Mukandi lal
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बैरिस्टर मुकंदी लाल: एक समर्पित स्वतंत्रता सेनानी और कला प्रेमी
जन्म और प्रारंभिक जीवन
बैरिस्टर मुकंदी लाल का जन्म 14 अक्टूबर 1885 को उत्तराखंड के चमोली जिले के पाटिली गांव में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पौड़ी के हाई स्कूल चोपड़ा से प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने अल्मोड़ा के रेमजे इंटर कॉलेज से हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं। 1911 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए की डिग्री प्राप्त करने के बाद, 1913 में वे इंग्लैंड चले गए, जहाँ उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, लंदन से बार एट लॉ की डिग्री प्राप्त की।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
भारत लौटने पर, उस समय कुली बेगार और बर्दाश्त प्रथा के खिलाफ देशभर में आंदोलन तेज हो रहे थे। मुकंदी लाल इन आंदोलनों से जुड़ गए और देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने लगे। 1920 में वे उत्तराखंड से एक प्रतिनिधिमंडल लेकर अमृतसर में हुए कांग्रेस सम्मेलन में शामिल हुए, जहाँ उनकी मुलाकात जिन्ना से हुई। इसके बाद, उन्होंने लैंसडाउन में कांग्रेस की स्थापना की।
1922 में उन्होंने “तरुण कुमाऊं” नामक अखबार की शुरुआत की, जो मेजनी की ‘यंग इटली’ से प्रेरित था। इस अखबार ने स्वतंत्रता संग्राम की भावना को जन-जन तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके साथ ही, मुकंदी लाल को पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली और उनके साथियों की पैरवी करने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई।
राजनीतिक सफर
1923 में मुकंदी लाल गढ़वाल क्षेत्र से लेजिस्लेटिव काउंसिल के लिए चुने गए, जहाँ उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर जोर दिया। उनका जीवन राष्ट्रसेवा और समाज सुधार के प्रति समर्पित रहा।
कला और संस्कृति के प्रति योगदान
मुकंदी लाल न केवल एक स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि कला और संस्कृति के भी महान संरक्षक थे। उन्हें मौला राम के चित्रों को विश्व पटल पर लाने का श्रेय जाता है। उनकी प्रसिद्ध पुस्तकें
“सम नोट्स ऑन मौलाराम”,
“गढ़वाल पेंटिंग”,
“गढ़वाल स्कूल ऑफ पेंटिंग”
सम्मान और योगदान
उनके असाधारण योगदान के लिए 1972 में उन्हें उत्तर प्रदेश ललित कला अकादमी की फेलोशिप से सम्मानित किया गया। उनका कोटद्वार स्थित घर “भारतीय भवन” पक्षियों और दुर्लभ फूलों का एक छोटा संग्रहालय है, जो उनकी कला और प्रकृति के प्रति गहरी रुचि को दर्शाता है।
बैरिस्टर मुकंदी लाल का जीवन समाज सेवा, कला, संस्कृति और स्वतंत्रता संग्राम के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता का प्रतीक है। उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और गढ़वाल की कला को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने में अमूल्य है।
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