उत्तराखंड की पुरा प्रजाति

मानव प्रजाति का इतिहास कई लाखों वर्ष पुराना है मानव की उत्पत्ति अफ्रीका महाद्वीप में मानी जाती है भारत के संदर्भ में मानव का प्रथम साक्ष्य नर्मदा घाटी क्षेत्र में मिला था ।
प्रोटोऑस्टोलाइट
मंगोलाइट
भूमध्य सागरीय
नार्डिक भारत में सबसे बाद में आने वाली प्रजाति थी ।
कोल प्रजाति
उत्तराखंड आने वाली प्रथम प्रजाति कोल (मुंड) को माना जाता है शिव प्रसाद डबराल ने भी कोल (मुंड) को हिमालय क्षेत्र की प्राचीन प्रजाति कहा था प्राचीन साहित्य व ग्रंथों मे कोलों का वर्णन मिलता है वहां पर इन्हें मुंड या शबर नाम से पुकारा गया है।
कोल प्रजाति के लोग दिखने में आकर्षक नहीं होते थे वह दिखने में वह कुरूप व भद्दे होते थे ।
कोल समाज में नाग पूजा के साथ-साथ लिंग पूजा भी होती थी कॉल प्रजाति में कुमार कुमारी प्रथा का उल्लेख मिलता है इस प्रथा में भोटानातिक प्रभाव की झलक दिखती है।
किरात प्रजाति
कोल प्रजाति के बाद उत्तराखंड में आने वाली जो प्रजाति थी उन्हें किरात नाम से जाना जाता हैै ।
किरातों का अन्य नाम किन्नर या कीर भी मिलता है ।
किरातों का उल्लेख प्राचीन साहित्य स्कंद पुराण महाभारत बाणभट्ट की पुस्तक कादंबरी व कालिदास की पुस्तक रघुवंश में मिलता है ।
स्कंद पुराण में कि रातों को भिल्ल कहा गया है।
महाभारत के वन पर्व के अनुसार किरातों ने अपने नेता शिव के झंडे के नीचे अर्जुन से युद्ध लड़ा था कहा जाता है कि यह युद्ध फील लव केदार नामक स्थान पर लड़ा गया था जिससे अब शिव प्रयाग कहा जाता है।
किरातों की भाषा मूंडा थी।
आज पिथौरागढ़ अस्कोट जिसका प्राचीन नाम अस्सीकोट व डीडीहॉट नामक स्थान पर किरातो के वंशज रहते हैं।
खस प्रजाति
किरातों के बाद उत्तराखंड में आने वाली अगली प्रजाति खस थी
खासों का उल्लेख प्राचीन साहित्य महाभारत व राजशेखर की काव्य मीमांसा में मिलता है ।
राजशेखर की काव्य मीमांसा के अनुसार उस समय हिमालय के कार्तिकेयपुर नगर में खस पति का राज्य था।
गुप्त शासक रामगुप्त का खसाधिपति के साथ हुआ था इस युद्ध में खसाधिपति ने राम गुप्त को पराजित कर उसकी पत्नी ध्रुवस्वामिनी को कैद किया था इसकी जानकारी विशाखदत्त के नाटक देवी चंद्रगुप्त से मिलती है।
महाभारत के सभा पर्व के अनुसार खासों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों का साथ दिया था उन्होंने पांडों के विरुद्ध युद्ध लड़ा था
खस समाज में कई प्रकार की प्रथा प्रचलित थी
पशु बलि प्रथा
टिकुआ प्रथा खसाें विधवा किसी भी अन्य पुरुष को घर में रख सकती थी।
झटेला प्रथा यदि कोई स्त्री किसी दूसरे व्यक्ति से शादी करती थी तो उसके पहले पति से उत्पन्न पुत्र को झटेला कहा जाता था
खस प्रजाति के लोग अपनी जेष्ठ पुत्र को मंदिर में दान दिया करते थे।
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