प्राचीन काल से ही आभूषण मानव सभ्यता का अभिन्न अंग रहे है, स्त्री व पुरुषों द्वारा प्राचीन समय से ही आभूषण का प्रयोग किया जाता रहा है, सभ्यता व समय के साथ- साथ आभूषण की बनावट व डिजाईन में परिवर्तन आते रहे है
प्राचीन समय मानव सभ्यता के विकास के समय जहाँ मानव ने हड्डी के आभूषण का प्रयोग किया फिर वहीं समय के साथ वह धातु के आभूषण का भी प्रयोग करने लगा , ऋग्वेद में आभूषण को निष्क रुक्म कहा गया है
उत्तराखंड में भी प्रचीन समय से ही आभूषणों का अपना महत्व रहा है यहाँ पर स्त्री पुरूषों द्वारा यह पहने जाते थे
प्राचीन समय में यहाँ गढ़वाल व कुमांऊ में पुरूषों द्वारा भी कानों में कुंडल पहने जाते थे लेकिन अब दिन प्रतिदिन इनका प्रचलन कम हो गया है
माथा व सिर के आभूषण
शीशफूल
मांगटीका
सुहाग बिंदी
कान के आभूषण
मुर्खली
बाली व कुंडल
तुग्यल
गोरख
कर्णफूल
मुनाड ( कुमांऊ में पुरूषों द्वारा कान में पहने जाते है)
मछली व झुपझुपी
मुरकी या बुजनी
नाक के आभूषण
नथ नथुली
बुलाक
बिड
फुल्ली
गले के आभूषण
गुलोबन्द
लाकेट
चरयो
हमेल
कंठीमाला
झुपिया
सुतुवा
चन्दरौली
हंसुली (बच्चों द्वारा गले में पहने जाती है)
हाथ के आभूषण
पौंची
गुंठी
गोखले
ठवाक्
चूड़ी
कंगन
धागुल (बच्चों द्वारा हाथ में पहने जाते है)
पैरौ के आभूषण
कण्डवा
बिछुवा
इमरती
झांवर
पोंटा
लच्छा
पूलिया
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