उत्तराखंड चार धाम

चार धाम
हिन्दुधर्म में मान्यता रखने वाले व्यक्तिओं के जीवन में चारधाम की यात्रा का बड़ा महत्व है, प्रत्येक हिन्दु अपने जीवन में इन चारधाम की यात्रा कर अपने पाप कष्टों व जीवन में मोक्ष प्राप्त करना चाहता है ये चारधाम है
* यमुनोत्री धाम
* गंगोत्री धाम
* केदारनाथ
* बद्रीनाथ
यमुनोत्री धाम
यमुनोत्री धाम उत्तरकाशी जनपद में स्थित है। सर्वप्रथम चार धाम की यात्रा यमुनोत्री से प्रारंभ की जाती है ।
यमुनोत्री धाम के पास तप्त पानी का कुंड है; जिसका नाम सूर्य कुंड है, उस तप्त कुंड में चावल व आलू को पोटली में बांधकर छोड़ दिया जाता है वह स्वयं पक कर तैयार हो जाते हैं जिसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया जाता है ।
यमुनोत्री मंदिर के कपाट भैया दूज के दिन बंद कर दिए जाते है,यमुनोत्री मां की शीतकलीन पूजा खरसाली गांव में की जाती है ।
यमुनोत्री धाम के कपाट ग्रीष्म काल में अक्षय तृतीया के दिन खोले जाते हैं,विधि विधान से मां का डोला ग्रीष्म काल में धूम धाम के व बजे गाजों के साथ मां का डोला यमुनोत्री मंदिर में ले जाया जाता है जिसमें श्रद्धालु गण भाग लेते है ।
सर्वप्रथम यमुनोत्री मंदिर का निर्माण टिहरी रियासत के शासक सुदर्शन शाह ने कराया था; समय समय पर इसका पुन: उत्थान होता रहा है यमुनोत्री धाम का पुन: निर्माण 19वीं सदी में भी किया गया था ।
यमुनोत्री धाम के पास से यमुना नदी प्रवाहित होती है,यमुना नदी का उद्गम बंदर पूंछ पर्वत श्रेणी के यमुनोत्री नामक ग्लेशियर से होता है ।
उत्तराखंड में यमुना नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी टोंस नदी है ,यमुना नदी इलाहाबाद में गंगा नदी से मिल जाती है वह गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी व दाहिनी सहायक नदी भी है ।
गंगोत्री धाम
गंगोत्री धाम उत्तरकाशी जनपद में स्थित है यह माता को समर्पित है । आधुनिक गंगोत्री मंदिर को खोजने का श्रेय गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा को जाता है क्योंकि 1803 के भूकम्प में मंदिर को क्षति पहुंची थी अमर सिंह थापा ने मन्दिर निर्माण किया समय-समय पर मंदिर पुन: उत्थान होता रहा है ।
गंगोत्री मां की शीत कालीन पूजा मुखवा गांव में होती है, मुखवा गांव को गंगा का मायका कहा जाता है । मुखवा को मुखीमठ मुखवास, मुख्य मठ कहते है
गंगोत्री धाम के कपाट ग्रीष्म काल में अक्षय तृतीय के दिन खुलते हैं, तब मां गंगा के डोला को शीतकालीन आवास मुखवा से गंगोत्री धाम लाया जाता है ।
लोग पूजा-अर्चना बाजे गाजे के साथ मां को गंगोत्री मंदिर में ले जाते हैं, गंगोत्री धाम के कपाट अन्नकूट पर्व या—गोवर्द्धन पूजा के पावन पर्व पर शीतकाल के लिए बंद हो जाते है ।
फिर मां गंगा की डोली उनके शीतकालीन प्रवास स्थल मुखवा जाती है ।
गंगोत्री धाम के पास से भागीरथी नदी प्रवाहित होती है, जिस का उद्गम गंगोत्री ग्लेशियर में गोमुख नामक स्थान से होता है, गंगोत्री ग्लेशियर राज्य का सबसे बड़ा ग्लेशियर है, भागीरथी की सबसे बड़ी सहायक नदी भिलंगना नदी है ।
गंगोत्री धाम से गोमुख की दूरी लगभग 16 य 17 किमी का पैदल दुर्गम ट्रैक है जहाँ पर हर साल हजारों श्रद्धालु गोमुख जाते है दोस्तों जलवायु परिवर्तन का शिकार गंगोत्री ग्लेशियर हो रहा है प्रतिवर्ष यह ग्लेशियर पीछे खिसक रहा है।
केदरनाथ धाम
केदरनाथ धाम रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है, यह भगवान शिव को समर्पित है |
यह उत्तराखंड में स्थित एकलौता ज्योतिर्लिंग है जिसे 12 वा ज्योतिर्लिंग माना गया है ,
शीतकाल के दौरान केदारनाथ धाम के कपाट बंद हो जाते है, शीतकाल में बाबा केदार की पूजा उखीमठ के ओमकारेश्वर मंदिर होती है।
प्राचीन परंपरा के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन हर साल ओमकारेश्वर मंदिर उखीमठ में केदारनाथ धाम के कपाट खुलने का दिन निकाला जाता है,ग्रीष्म काल में अप्रैल-मई में केदारनाथ धाम के कपाट खोले जाते हैं ।
केदारनाथ धाम के पास से मंदाकिनी नदी प्रवाहित होती है। अलकनंदा और मंदाकिनी का संगम रुद्रप्रयाग जनपद में ही होता है 16 से 17 जून 2013 में केदारनाथ धाम के पास भीषण आपदा आई थी आपदा केदरनाथ के पास चौराबाड़ी ताल टूट जाने से आयी यहीं से मंदाकनी नदी का उद्गम होता है ।
इस आपदा में केदारनाथ धाम को काफी नुकसान पहुंचा था, आपदा पीड़ित को बचाने के लिए ऑपरेशन राहत व ऑपरेशन सूर्यहोप चलाया गया था ।
केदारनाथ धाम की आपदा के विषय में उत्तराखंड के भूतपूर्व सीएम मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक जी ने एक किताब लिखी है , जिसका नाम है “केदारनाथ आपदाओं की सच्ची कहानियां “।
बद्रीनाथ धाम
बद्रीनाथ धाम चमोली जनपद में स्थित है जो भगवान विष्णु को समर्पित है, शंकराचार्य ने नारद कुण्ड से विष्णु की मूर्ति को निकालकर बद्रीनाथ धाम में स्थापित किया था ।
हर वर्ष विजयादशमी पर बद्रीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद करने की तिथि घोषित की जाती है।
शीतकाल में बद्रीनाथ धाम के कपाट विधि विधान से बंद किए जाते हैं,शीतकाल में सांकेतिक रूप से भगवान बद्रीनारायण की पूजा जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में की जाती है।
बद्रीनाथ धाम के पास अलकनंदा नदी प्रवाहित होती है अलकनंदा नदी का उद्गम शतोपंथ ग्लेशियर के पास अलकापुरी नामक स्थान से होता है ।
बद्रीनाथ धाम के पास से अलकनंदा नदी प्रवाहित होती है, अलकनंदा नदी का उद्गम सतोपंथ ग्लेशियर के पास अलकापुरी नामक स्थान से होता है
अलकनंदा और भागीरथी की संयुक्त धारा ही गंगा कहलाती है, देवप्रयाग टिहरी से जहाँ इन दोनों नदियों का संगम होता है,इस संगम को सास बहु का संगम भी कहते है भागीरथी नदी को सास व अलकनंदा नदी को बहु कहते हैं
बद्रीनाथ धाम में पूजा अर्चना केरल के रावल नम्बूदरी ब्राह्मण करते हैं इन्हें शंकराचार्य का वंशज माना जाता है यह आजीवन ब्रह्मचारी रहते हैं यह मूलत: केरल मालवा के निवासी है
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