चैत्य

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चैत्य का शाब्दिक अर्थ चिता से  है,अर्थात चैत्य  वह स्मारक थे जहां महापुरुषों की अस्थियां राख गाडकर रखे जाते थे l

आगे चलकर यह चैत्य पूजा के स्थल बन गए यह एक बौद्ध मंदिर का रूप होते है जिसमें एक स्तूप समाहित होता है l

चैत्य गृह दो प्रकार के होते हैं

 गुहा चैत्य 

संरचनात्मक चैत्य 

चैत्य बौद्ध धर्म की दो शाखा (पंथ) महायान शाखा (पंथ) तथा हीनयान शाखा (पंथ) से संबंधित है l 

हीनयान शाखा से संबंधित प्रमुख चैत्यगृह

भाजा, कोंडने,  पीतलखोरा, अजंता, बेडसा, नासिक, कार्ले  

पश्चिमी भारत में सातवाहनों के काल में अनेक  चैत्य का निर्माण करवाया गया l

सातवाहन युगीन गुफाएं हीनयान मत से संबंधित है क्योंकि इस समय तक महायान का उदय नहीं हुआ था 

अतः इनमें कहीं भी बुद्ध की प्रतिमा नहीं पाई जाती है, हीनयान मूर्ति पूजक नहीं थे l

जबकि महायान महायान मूर्ति पूजा पर विश्वास करते हैं l

हीनयान  इनकी पादुका, आसान स्तूप बौद्धिक वृक्ष आदि के माध्यम से ही चित्रण किया गया है l

प्रमुख चैत्यगृह 

कार्ले चैत्यगृह  महाराष्ट्र में लोनावाला के निकट स्थित है l

नासिक चैत्यगृह सातवाहन कालीन महाराष्ट्र के नासिक में पांडू लेने नमकबहुत गुफाओं का एक समूह है l इसमें 16 बिहार और चैत्यगृह है l

भाजा चैत्यगृह महाराष्ट्र के लोना वाला के पास पुणे जिले में  है l

पीतलखोरा चैत्यगृह महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है यह 13 गुफाओं से मिलकर बना है इसका निर्माण संभवत द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ है इसके 37 स्तंभों में 12 बचे  है l

वेदसा चैत्यगृह यह कार्ले चैत्यगृह के दक्षिण में स्थित है, यह चैत्यगृह लकड़ी की वस्तुकला के लिए प्रसिद्ध है l 

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