नन्दा देवी राजजात यात्रा

पर Guruji द्वारा प्रकाशित

श्री नंदा देवी राजजात यात्रा

लेकिन बड़ी नंदा राजजात यात्रा 12 वर्ष या उससे अधिक समय अंतराल में होती है, यह बड़ी यात्रा मां नंदा को उनके ससुराल भेजने की यात्रा है मां नंदा को भगवान शिव की पत्नी माना जाता है और कैलाश हिमालय भगवान शिव का निवास स्थान है

यह मान्यता है एक बार मां नंदा अपने मां के  यहाँ (मायके) आयी थी, लेकिन किन्ही कारणों से वहां 12 वर्ष तक ससुराल नहीं लौट सकी बाद में उन्हें आदर सत्कार के साथ ससुराल भेजा गया

चमोली जिले में पट्टी चांदपुर और श्री गुरु क्षेत्र को मां नंदा का मायके और बधाण क्षेत्र को  उनका ससुराल माना जाता है। 

यह ऐसी विश्व की सबसे लंबी पैदल यात्रा है और गढ़वाल-कुमाऊं की सांस्कृतिक विरासत श्रीनंदा राजजात अपने में कई रहस्य और रोमांच को संजोए हुए हैं

नंदा राजजात सांस्कृतिक ऐतिहासिक यात्रा  है जो चमोली के नौटी गांव से शुरू होती है, और साथ ही करुड़ के मंदिर से भी दशोली और बधाण दशमद्वार की डोलिया यात्रा में शामिल होने के लिए निकलती हैं, नौटी से होमकुंड तक लगभग 280 किलोमीटर की दूरी पैदल यात्रा द्वारा तय की जाती है

इस दौरान घने जंगलों, पथरीले मार्ग, दुर्गम पहाड़ ,दर्रे, बर्फीले, पहाड़ों को पार करना पड़ता है अलग-अलग रास्तों से गांव-गांव से डोलिया और छतौलिया इस यात्रा में शामिल होती है कुमाऊं से भी अल्मोड़ा, कटारमल और नैनीताल से डोलिया नंदकेसरी में आकर नंदा राजजात यात्रा में शामिल होती हैं

नौटी से शुरू हुई इस यात्रा का दूसरा पड़ाव ईडाबधाणी फिर यात्रा लौटकर नौटी आती है इसके बाद कांसुवा, सेम ,कोटि, भगौती कुलसारी चैपडो, मुन्दोली, वाणा, बेदनी, पातर,  नचैणीया से विश्व विख्यात रूपकुंड, सिला- समुंद्र, होमकुंड से चनयांघट  सुतोली से घाट होते हुए नंदप्रयाग फिर नौटी आकर यात्रा का चक्र पूरा होता है इसमें लगभग 280 किलोमीटर की दूरी तय की जाती है

नंदा राजजात यात्रा में जो चौसिंगीय चार सिंह वाला मेढे (खाडू) का बहुत महत्व है, इसे माँ नन्दा का रूप माना जाता है जिसे यात्रा में  शामिल किया जाता है जो स्थानीय क्षेत्र में नंदा राजजात का समय आने से पूर्व ही पैदा हो जाता है, उसके पीठ पर रखे गए दो तरफ थैले में श्रद्धालु गहने सामग्री हल्की भेंट देवी के लिए रखते हैं

होमकुंड में पूजा होने के बाद खाडू आगे हिमालय की ओर प्रस्थान के लिय छोड़ा जाता है लोक मान्यता है कि चौसिंगीय खाडू  आगे नंदा देवी के क्षेत्र कैलाश में प्रवेश कर जाता है

 

श्री नंदा देवी राजजात के पड़ाव

श्री नंदा देवी राजजात के पड़ाव

प्रथम पड़ाव:- ईडावधाणी

नौटी में यात्रा के शुभारंभ पर अपार भीड़ होती है। गाजे-बाजे वह भंकोरोसहित भगवती नंदा को हजारों लोग विदा करते हैं, भगवती वचन निभाने के लिएईडावधानी पूजा लेने जाती है। मार्ग मेंछंतौली,ल्यूइसा,सिलंगी,चौडती,हेलुडीमें मां भगवती का आदर सत्कार होता है और भगवती तथा चौसिग्य,खाडू रात्रि विश्राम हेतु ईडावधानी पहुंचते हैं।जहां रात भर जागरण होता है।

 

दूसरा पड़ाव:- नौटी

ईडावधाणी से दूसरे दिन यात्रा वापस नौटी के लिए रवाना होती है मार्ग में रिठोली,जाख,दियारकोट,कुकड़े,पुडीयानी,कनोठ, झड़कंडेव नैडी गांवों में पूजा लेकर रात्रि विश्राम हेतु राजगुरु परिवार के गांव नौटी पहुंचते हैं मंदिर में रात भर जागर होते हैं।

 

तीसरा पड़ाव:-  कांसुवा

नौटी से नंदा देवी राजजात की कैलाश के लिए विदाई के समय गांव के नर-नारी, बच्चे नम आंखों से विदा करते हैं, नैणी  व देवल गढ़सारी की छंतौलीया बैनौली गांव से पहले यात्रा में शामिल होती है, मलैडी व नौना की छंतौलिया भी यात्रा में शामिल होकर राजजात की शोभा बढ़ाती है।

यात्रा गढ़वाल के राजवंशी कुंवर के मूल गांव कासुवा पहुंचती है, यहां पर परंपरागत रूप से यात्रियों का भव्य स्वागत होता है।

 

चौथा पड़ाव:- सेम

यह नंदा देवी राजजात का चौथा पड़ाव है यहां पर नंदा देवी की पवित्र राज छंतौली कोटी के ड्यूनी ब्राह्मणों को सौंपी जाती है। तत्पश्चात गढ़वाल की प्रथम राजधानी चांदपुर गढ़ी में गढ़वाल नरेश की शाही पूजा होती है, जिसे देखने गढ़वाल कुमाऊं क्षेत्र के यात्री बड़ी संख्या में आते हैं ।

 

पांचवा पड़ाव:- कोटी

सेम से कोटी जाने के लिए धारकोट तक थोड़ी चढ़ाई है,धारकोट, घंडियाल व सिमतौली गांव में पूजा पाकर यात्रा सितोलीधार पहुंचती है।

यहां पर भगवती से कोटिश प्रार्थना की जाती है, इसलिए धार के दूसरी तरफ के गांव का नाम कोटीपड़ा। यात्रा नंदा देवी मंदिर कोटी  व मैती पहुंचती है, यहां पर विशेष पूजा होती है। यहीं पर खंडूडा , रतूडा, चलाकोट, थापली को बगोली के लाटू यात्रा में शामिल होते हैं।

रात में मंदिर में जागरण होता है। यहां प्राचीन पत्थर की सुंदर मूर्तियां है, लाटू और जीतू बगड़वाल का मंदिर भी गांव में है।

 

छठवां पड़ाव:- भगोती

कोठी से भगोती रवाना होने पर धतोड़ा के खेतों में भगवती के पहलवानों का मल युद्ध होता है इस युद्ध को देखने के लिए संपूर्ण क्षेत्र का विशाल मेला यहां पर लग जाता है |

कोटी के धतोड़ा, बम्याला, चौरीखाल में कंडवाल गांव छैकुड़ा, भनोड़ा की छंन्तोलिया राज जात में शामिल होती है |

भगोली पहुंचने पर भगवती व यात्रा दल का भव्य स्वागत किया जाता है यह भगवती के मायके क्षेत्र का अंतिम पड़ाव है भगवती के नाम से ही भगवती गांव का नाम पड़ा है |

 

सातवां पड़ाव:- कुलसारी

 भगवती से केदार देवता की डोली यात्रा में शामिल होती है, भगोली गांव की सीमा पर क्यूर गधेरे पर क़िमोली, नैंनी की छंन्तोलिया का मिलन होता है, यहां पर भगवती कई घंटों का अनुनय विनय के बाद मायके से ससुराल क्यूर गधेरे को पार कर प्रवेश करती है |

वहां पर संपूर्ण पिंडर घाटी का सबसे बड़ा मेला लगता है चांदपुर व सिरगुरपट्टी की सभी छंतोलिया वहां पर इकट्ठा होकर भगवती के ससुराल क्षेत्र में पदार्पण करती हैं वहां से बुटोला थोकदारो, सयानो का सहयोग यात्रा को प्राप्त होता है |

काली का श्री यंत्र यहां भूमिगत है, अमावस्या के दिन यहां सातवा पड़ाव होता है रात्रि को काली श्री यंत्र की पूजा की जाती है कुम्हार जाति के ब्राह्मण वहां पर पूजा करते हैं |

 

आठवां पड़ाव:- चेपडियू

कुलसारी से चलने पर थराली में विशाल मेला लगता है थराली के पास ही देवराडा गांव है, जहां बघान की राजराजेश्वरी नंदा देवी वर्ष में 6 महीने रहती है और शेष छह महीने कुरुड़ (दशोली) में रहती है, चेपडियू बुटोला थोकदारो का गांव है| रात्रि विश्राम के समय सभी लोग देवी जागरण में व्यस्त रहते हैं |

 

नौवां पड़ाव:- नंदकेशरी

पिंडर नदी के उत्तर पूर्वी भारत में स्थित यह स्थान महत्वपूर्ण है, कुमाऊ की अल्मोड़ा की नंदा तथा डंगोली की भ्रामरी देवी के प्रतिक तथा छंतोदी यहां पर मुख्य राजजात में सम्मिलित होती हैं |

कुरुड़ की राजराजेश्वरी नंदा की डोली का यहां पर भव्य स्वागत एवं सत्कार होता है, राजजात में पहली नंदा की स्वर्ण प्रतिमा युक्त डोली के दर्शन यहां पर होते हैं |

बहुत बड़ी संख्या में लोगों का जमावड़ा यहां पर लगाता हैं यहां पर शिव, श्री नंदा का मंदिर स्थित है।

 

दशवां पड़ाव:- फल्दियागांव

 दूसरे दिन प्रात: राजजात नंदकेशरी से फल्दियागांव के लिये प्रस्थान करती है ,रास्ते में पुर्णशेरा पर भेकलझाड़ी का देवी यात्रा में विशेष महत्व है| कुनियाल ब्राह्मणों द्वारा इस क्षेत्र से हेमकुंड तक विशेष पूजा परंपरागत रूप से की जाती है।

 

 ग्याहरवा पड़ाव:- मुन्दोली

फल्दियागांव से आगे पिलफाड़ा के नंदा देवी मंदिर में बड़ा मेला लगता है, यहां पर भगवती में शस्त्रों से पिलवा दैत्य को फाड़ डाला था इसलिए इस स्थान का नाम पिलवाड़ा पड़ा ल्वाणी, बगरियाड में पूजा स्वागत पाते हुए यात्रा रात्रि विश्राम हेतु मुन्दोली पहुंचती है| यात्रा का अंतिम पड़ाव स्टेशन है ।

यहां से जीप द्वारा वाण तक पहुंचा जा सकता है, मुन्दोली पहुंचने पर भगवती व यात्रा दल का भव्य स्वागत होता है, यहां पर महिलाएं व पुरुष संयुक्त रूप से स्वागत गीत झौड़ा के रूप में गाते हैं, इसी प्रकार विदाई के गीत होते हैं ।

 

बारहवा पड़ाव:- वाण

मुन्दोली से आगे लोहाजंग (ल्वाजिंग) एक मनोरम स्थल है, यहां से हिमालय काफी नजदीक दिखता है, पूरा बधाण परगना व कुमाऊं की पहाड़ियां दूर-दूर तक दिखाई देती हैं, यहां भव्य मेला लगता है तथा अनेक गांव की टोलियां शामिल होती हैं |

यात्रा में आगे चलकर वाण पहुंचने पर भगवती का भव्य स्वागत होता है, वाण गांव यात्रा पथ का अंतिम गांव है, यहां पर वाण के लाटू देवता के मंदिर के भीतरी कपाट इसी दिन खोले जाते है|

वाण में दशोली कुरुड़ की नंदामय लाटू, कंडारा हिंडोली दशमद्वार की नंदामय लाटू, केदारू पौल्या,नौना दशोली की नंदादेवी, नौली का लाटू, मोठा का लाटू, वालम्पा देवी कुमजुंग से ज्वालपा देवी की डोली, ल्वाणी से लासी का जाख, खैनूरी का जाख, मंझोटी की नंदा, फरस्वान फाट के यक्ष देवता पसवा, जैसिंह देवता, कांडई लाखी का रूप दानू, बुरा का धौसिंह,  जसयारा, कंखुल, कपीरी, बद्रीश पंचायत, बद्रीनाथ की छतौली, उमट्टा, डिमर, घौसिंह सुतोल, कोट डंगोली की कटार, स्यारी भैटी भगवती, रामणी का त्यूण रजकोटी, लाटू, चंदनिया पेनखंडा आदि के 200 से अधिक देवी देवताओं का मिलन होता है, देशाली, दशमद्वार, लाता, अल्मोड़ा, कुरुड़, बधाण की नंदा देवी डोलियों पर सज धज कर राजजात में चार चांद लगाते हैं |

वाण से प्रसिद्ध लाटू देवता व चार सींग के मेढे की अगुवाई में यात्रा आगे बढ़ती है ।

 

तेरहवां पड़ाव:- गरोलीपातल

वाण से आगे रिणकीधार में भगवती नंदा ने अपनी यात्रा पथ के अंतिम दैत्य का संहार किया था| वाण के लाटू देवता के शौर्य और निष्ठा से प्रसन्न होकर देवी ने अपने गणों से कहा था कि अब वाण का लाटू मेरी यात्रा का अगवान (पथ प्रदर्शन) होगा| वाण में लाटू ने यात्रा की पवित्रता के लिए अनेक प्रतिबंधों का वचन देवी से लिया था |

रिणकीधार से आगे कैलगंगा में यात्री स्नान और तिलपात्र करते हैं, यहां पर गाढे के कपड़ों का थान नदी में डालकर पार किया जाता है, तत्पश्चात यात्रा घने देवदार और सुरई के जंगल के बीच स्थित गरोलीपातल में रात्रि विश्राम के लिए पहुंचती है।

 

चौद्हवा पडाव:- वेदनी

वैतरणी कुंड में स्नान करने की परंपरा है यह बुग्याल सबसे बड़ा बुग्याल है, राजकुंवर अपने पितरों को तर्पण देते हैं,नौ पाला का सूत कुंड के चारों ओर रिंगाल की लकड़ियों को खड़ा करके घुमाया जाता है |

यात्री लोग इस धागे को पकड़कर पितरों को तर्पण देते हैं,यहां पर नंदा देवी का मंदिर स्थित है, बहुत बड़ा मेला लगता है| त्रिशूल तथा नंदा घूंघरी पर्वत चोटियों का द्र्श्य दिखाई देता है।

 

पन्द्रहवा पड़ाव:- पातर नचौणइया

गरौलीपातल से यात्रा दल वैतरणी पहुंचता है, जिसे अब बेदनी, वेदनी बुग्याल, बेदिनी कुंड नाम से भी पुकारा जाता है |

यहां पर हिमालय की तलहटी में स्थित सुंदर कुंड को वेदिनी कुंड कहते हैं, इसमें हिमालय का प्रतिबिंब सुंदर दिखाई देता है | बेदिनी कुंड से यात्री दल पातर  नचौणइया पहुंचता है, यहीं पर पूजा के बाद विश्राम होता है, इस स्थान का नाम पहले निराली धार था |

माना जाता है कि 14वीं शताब्दी में कन्नौज के राजा जसधवल ने यात्रा की परंपराओं का उल्लंघन करते हुए राजजात में शामिल होकर यहां पर नृतकियो से नाच करवाया था जो देवी कोप से शिला रूप हो गई, तभी से इस स्थान का नाम पातर नचौणइया पड़ा।

 

सोलहवा पड़ाव:- शिला समुद्र

पातर नचौणइया से तेज चढ़ाई पार कर यात्रा कैलवाविनायक पहुंचती है, यहां पर गणेश की भव्य पाषाण मूर्ति सुशोभित है, कैलवा विनायक से आगे बगुवाबासा रमणीय निर्जन स्थान है जहां भगवती नंदा देवी के वाहन ‘बाघ’ का निवास होने के कारण ही इस स्थान का नाम बगुवावासा पड़ा |

रूपकुंड पहुंचकर यात्री हिमालय की रहस्यमयी बर्फीली झील को देखकर अपनी थकान दूर करते हैं, इस कुंड में आज भी 14 शताब्दी के राजा जसधवल के यात्री दल के अस्थि पंजर पड़े हुए हैं| 16200 फीट की ऊंचाई पर स्थित रूपकुंड के चारों और ब्रहम कमल व फेन कमल खिले दिखाई पड़ते हैं |

रूपकुंड से आगे ज्यूरांगली धार पूरे यात्रा मार्ग का सर्वाधिक कठिन भाग है, शिलासमुद्र पहुंचने के लिए 17500 फीट के ऊंचे इस पहाड़ी दर्रे को पार करना अति आवश्यक होता है |

लाटू देवता ने यहां पर राजजात के यात्रियों को पार कराने वाला टैक्स देने का प्रावधान किया था, जो आज भी लागू है| ग्लेशियर, शिलाओ के समुद्रनुमा विरान स्थल शिला समुद्र पर यात्रा रात भर पड़ाव करती है।

सत्रहवा पड़ाव:- चंदनियाघाट

शिलासमुद्र से प्रातः यात्री दल होमकुंड के लिए रवाना होता है,यात्री दल होमकुंड पहुंचकर होमकुंड (यज्ञस्थल) के दर्शन करता है| पवित्र कुंड के यहां स्थित होने पर ही इस स्थान का नाम होमकुंड रखा गया |

यहां पर सभी मायके वाले अपनी छतोलियो को विसर्जित कर देते हैं| ससुराल क्षेत्र की भोजपात्र से बनी छतोलिया व देवी डोलिया वापस चली आती है|

यज्ञ होता है, चार सींग के मेढे, देवी और उसके साथ आए दो सौ से अधिक देवी देवताओं की पूजा होती है, तत्पश्चात चार सींग के मेढे को अनंत कैलाश के लिए विदा किया जाता है |

विदाई के इस मौके पर चार सींग के मेढे की आंखों से अश्रु धारा गिरने लगती है, यात्रीगण भी इस दृश्य को देख अपने आंसू नहीं थाम पाते| होमकुंड में यात्रा विसर्जन के बाद यात्री दल वापस चंदनियाघाट पहुंचता है।

 

अठारहवा पड़ाव:- सुतोल

चंदनिया घाट से सुतोल आने के लिए रिंगाल, देवदार और सुरई के घने जंगल है इसे पार करते हुए यात्री सुतोल गांव पहुंचते हैं| इसी गांव से दूसरे दिन कुमाऊं और बधाण के देवी देवता और डोलिया कन्नौल, वाण होते हुए अपने अपने मूल स्थानों को लौट जाते हैं |

दशोली और पैनखंडा के देवी देवता भी सुतोल से अपने निश्चित मार्गों के लिए राजवंशियो से विदा लेते हैं ।

 

उन्नीसवा पड़ाव:- घाट

सुतोल से नंदाकिनी नदी के दाहिने किनारे चलकर सितैल में नंदाकिनी का पुल पार कर रास्ते भर कैल चीड़ के घने जंगल मिलते है| सितैल में वन विभाग के विश्रामगृह में कुछ देर विश्राम कर देर शाम तक यात्री दल घाट पहुंचता है।

 

बीसवां पड़ाव:- नौटी

दूसरे दिन यात्री दल घाट से बस अथवा अन्य वाहनों द्वारा नंदप्रयाग, लंगासु में सुफल देते हुए कर्णप्रयाग पहुंचता है |

कर्णप्रयाग में कोटि के ड्यूडी ब्राह्मणों द्वारा राजकुंवरो व बारह थोकी ब्राह्मणों आदि को सुफल देकर विदा किया जाता है, कपीरी व बद्रीश पंचायत के यात्री इड़ाबधानी में सुफल देते हुए राजकुंवर और राज पुरोहित के साथ शेष यात्री सांय तक नौटी ग्राम में वापस लौट आते हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

श्रेणी:

6 टिप्पणियाँ

Vipin · जनवरी 18, 2021 पर 6:47 पूर्वाह्न

उम्दा जानकारी🙏🙏🙏🙏

Jitendra Dasila · जनवरी 21, 2021 पर 1:24 अपराह्न

Tqq sir
Bhut Aacha h

Jitendra Dasila · जनवरी 21, 2021 पर 1:25 अपराह्न

Help full notes

प्रातिक्रिया दे

Avatar placeholder

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *