आदि शंकराचार्य

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आदि  गुरु शंकराचार्य जीवन परिचय

* माता का नाम – सुभद्रा (आर्यम्बा)

* पिता का नाम – शिव गुरु

*  यह नम्बूद्री ब्राह्मण थे

* प्रथम गुरु – गोविन्द योगी 

* उपाधि – परमहंस

* जीवनीकार आनन्द गिरी

* दार्शनिक मत – अद्वैतवाद

* संस्थापक – स्मृति सम्प्रदाय

* प्रमुख ग्रन्थ – ब्रह्मसूत्र भाष्य

* मृत्यु (देह त्याग) – 820 बद्रीनाथ 

 

प्रारम्भिक जीवन

*  शंकराचार्य का जन्म केरल के नम्बूद्री ब्राह्मण परिवार में हुआ था, बाल्यकाल में इनके पिता की मृत्यु हो गयी थी तो इनका पालन पोषण शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्ध इनकी माता ने किया शंकराचार्य बचपन से ही प्रतिभा के धनी थे इनके असाधारण प्रतिभा की चर्चा दूर – दूर तक फैली थी ।

 

* अपनी माता की अनुमति ले कर  इन्होंने संन्यास ग्रहण किया था गोविन्द भगवत्पाद जो इनके प्रथम गुरु थे उनसे इनकी भेंट नर्मदा नदी के तट पर हुई इन्हीं से इन्होंने संन्यास की दीक्षा ली थी ।

 

चार प्रमुख मठ

* आदि शंकराचार्य ने भारतीय संस्कृति एकता वेदान्त दर्शन के प्रचार-प्रसार के लिये चारों दिशाओं में चार मठ स्थापित किये थे जिनका विवरण निम्नवत है

    दिशा       मठनाम              राज्य/स्थिति              समर्पित

1- पूर्व – गोवर्धन पीठ – जगन्नाथपुरी (उडीसा) – बालभद्र और सुभद्र

2- पश्चिम – शारदा पीठ  – द्वारका (गुजरात) – श्रीकृष्ण

3- उत्तर- ज्योतिशपीठ – जोशीमठ (उत्तराखंड) – विष्णु

4- दक्षिण – श्रृंगेरी पीठ – (मैसूर) कर्नाटक –         शिव

 

शंकराचार्य के ग्रन्थ – ब्रह्मसूत्र भाष्य, गीताभाष्य, उपदेश साहसी, प्रपचंदसार तंत्र, मीरीशापच्चम

 

उत्तराखंड में शंकराचार्य प्रभाव

 

उत्तराखंड के सन्दर्भ में बात की जाय तो कहा जाता है ।

* आदि गुरु शंकराचार्य के आगमन के समय उत्तराखंड में कत्यूरी वंश का शासन था ।

 

* जोशीमठ (ज्योतिर्मठ ) आदि गुरु शंकराचार्य की तपस्थली रही यहाँ उन्होंने शहतूत का कल्पवृक्ष लगाया था इस वृक्ष के नीचे प्राचीन गुफा है यहाँ पर आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा तपस्या की गयी थी ।

 

* जोशीमठ में ही ज्योतिर्मठ की स्थापना की थी, त्रोटकाचार्य को इस मठ का प्रथम आचार्य नियुक्त किया गया ।

 * आदि गुरु शंकराचार्य ने सर्वप्रथम नारद कुण्ड से विष्णु की मूर्ति को  निकालकर बद्रीनाथ मन्दिर में स्थापित किया था।

* बद्रीनाथ की पूजा अर्चना केरल के रावल (नम्बूद्री ब्राह्मण) करते है इन्हें शंकराचार्य का वंशज माना जाता है ।

* केदारनाथ मन्दिर का पुन: उत्थान किया तथा पिथौरागढ़ में गंगोलीहाट में काली शक्तिपीठ की स्थापना की थी।

* मात्र 32 वर्ष की आयु मेंकेदरनाथ मन्दिर से कुछ दूर पर इन्होंने अपना देह का त्याग किया था।

 

 

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