Biography of Shri Dev Suman
श्री देव सुमन की बायोग्राफी : एक महान स्वतंत्रता सेनानी और बलिदानी
श्री देव सुमन का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वीर और समर्पित सेनानियों में प्रमुख रूप से गिना जाता है। उनका जन्म 25 मई 1916 को टिहरी गढ़वाल (वर्तमान उत्तराखंड) में हुआ था। उनका मूल नाम श्री दत्त बडोनी था, लेकिन बाद में उन्हें “श्री देव सुमन” के नाम से ख्याति प्राप्त हुई। उनके पिता का नाम हरिराम बडोनी और पत्नी का नाम विनय लक्ष्मी बडोनी था।
श्री देव सुमन का नारा, “तुम मुझे तोड़ सकते हो, मोड़ नहीं,” उनके अदम्य साहस और निष्ठा का प्रतीक है। उन्होंने अपने जीवन को देश और समाज की सेवा के लिए समर्पित कर दिया था।
प्रारंभिक जीवन और संघर्ष की शुरुआत
1930 में मात्र 14 वर्ष की आयु में श्री देव सुमन ने नमक सत्याग्रह में हिस्सा लिया, जो महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन था। इस आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्हें 15 दिनों का कारावास हुआ, जो उनके संघर्षपूर्ण जीवन की शुरुआत थी।
साहित्य और समाज सेवा
1937 में श्री देव सुमन ने “सुमन सौरभ” नाम से कविताएं प्रकाशित कराईं, जो उनके साहित्यिक और सांस्कृतिक योगदान का हिस्सा थीं। इसके बाद उन्होंने 1938 में गढ़देश सेवा संघ की स्थापना की, जिसे बाद में हिमालयन सेवा संघ कहा गया। इस संघ का उद्देश्य समाज सेवा और गढ़वाल क्षेत्र के लोगों को संगठित करना था।
राजनीतिक गतिविधियां
1938 में श्रीनगर (गढ़वाल) में प्रताप सिंह नेगी की अध्यक्षता में एक बड़ा राजनीतिक सम्मेलन आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में जवाहरलाल नेहरू और विजयलक्ष्मी पंडित भी शामिल हुए थे। इस मौके पर श्री देव सुमन ने गढ़वाल के दोनों भागों—ब्रिटिश गढ़वाल और टिहरी गढ़वाल—की एकता पर जोर देते हुए एक क्रांतिकारी बयान दिया: “यदि गंगा हमारी माता होकर भी हमें आपस में मिलने की बजाय दो हिस्सों में बांटती है, तो हम गंगा को ही काट देंगे।” इस बयान से उन्होंने क्षेत्रीय एकता और स्वतंत्रता की अपनी प्रतिबद्धता को स्पष्ट किया।
प्रजामंडल की स्थापना
23 जनवरी 1939 को देहरादून में टिहरी राज्य प्रजामंडल की स्थापना हुई, जिसका उद्देश्य टिहरी गढ़वाल में राजशाही के खिलाफ जनता को संगठित करना था। इस संगठन ने लोगों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और राजशाही के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई।
राजद्रोह और अनशन
21 फरवरी 1944 को श्री देव सुमन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। जेल में उन्हें अत्याचार और अमानवीय व्यवहार का सामना करना पड़ा। इस अन्याय के विरोध में उन्होंने जेल अधिकारियों के बुरे आचरण के खिलाफ आमरण अनशन शुरू किया। उनकी तीन प्रमुख मांगे थीं:
- प्रजामंडल को मान्यता दी जाए।
- उन्हें पत्र व्यवहार करने की स्वतंत्रता दी जाए।
- उनके विरुद्ध मामलों की अपील स्वयं राजा सुने।
जब उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो उन्होंने 3 मई 1944 को आमरण अनशन शुरू किया। प्रसिद्ध इतिहासकार शेखर पाठक ने इस भूख हड़ताल को “ऐतिहासिक अनशन” की संज्ञा दी।
बलिदान और स्मृति दिवस
श्री देव सुमन ने टिहरी जेल में 209 दिनों तक कठोर यातनाओं का सामना किया। उनके दृढ़ निश्चय और साहस के सामने सभी दबाव विफल रहे। 25 जुलाई 1944 को 84 दिनों की भूख हड़ताल के बाद उनकी मृत्यु हो गई। उनकी यह कुर्बानी टिहरी गढ़वाल की जनता के लिए प्रेरणास्त्रोत बनी और स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुई।
श्री देव सुमन की स्मृति में हर वर्ष 25 जुलाई को “श्री देव सुमन स्मृति दिवस” मनाया जाता है। यह दिवस उनके बलिदान और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को याद करने और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देने के रूप में मनाया जाता है। पहला स्मृति दिवस 25 जुलाई 1946 को आयोजित किया गया था।
श्री देव सुमन का जीवन संघर्ष, त्याग और देशभक्ति का प्रतीक है। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। उनका नारा “तुम मुझे तोड़ सकते हो, मोड़ नहीं” आज भी हमें सिखाता है कि सच्चे साहस और समर्पण के सामने कोई भी बाधा टिक नहीं सकती।
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