champawat jile

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चम्पावत जनपद का इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर

 

चम्पावत, उत्तराखंड राज्य का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण जिला है। इसका गठन 15 सितम्बर 1997 को किया गया था, लेकिन इसका इतिहास सदियों पुराना है। इस क्षेत्र का प्राचीन नाम “कुमुं” था। चम्पावत की स्थापना चंदवंशीय राजा सोमचंद द्वारा की गई, जिन्होंने इस क्षेत्र को अपनी राजधानी बनाया। चम्पावत का नाम चम्पावती नदी से पड़ा है, जो यहाँ प्रवाहित होती है। यह स्थान ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और यहाँ कई प्राचीन मंदिर, किले और धार्मिक स्थल स्थित हैं।

प्राचीन इतिहास

चम्पावत की स्थापना राजा सोमचंद ने की थी, जो चंदवंश के पहले शासक थे। 1000 ईस्वी से 1563 ईस्वी तक चम्पावत चंदवंश की राजधानी रही। मल्ल राजा वामदेव द्वारा स्थापित चम्पा नामक स्थान को बाद में चम्पावत के नाम से जाना गया। सोमचंद ने मल्ल राजाओं के अधीन रहते हुए इस क्षेत्र का प्रशासन किया। इस दौरान चम्पावत में राजबुंगा का किला और गौल्ला चौड का किला भी बनाया गया। चम्पावत के कानदेव पर्वत पर भगवान विष्णु का कुर्मावतार हुआ था, जो इसे धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाता है।

भौगोलिक स्थिति

चम्पावत जिला उत्तराखंड का सबसे छोटा जिला है, जिसका कुल क्षेत्रफल 1,766 वर्ग किमी है। यह जिला चार अन्य जिलों—पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, नैनीताल, और ऊधमसिंह नगर—से घिरा हुआ है, और इसकी सीमा नेपाल से लगती है। चम्पावत की नदियाँ जैसे चम्पावती, लोहावती, और लधिया इसे प्राकृतिक रूप से भी समृद्ध बनाती हैं। यह उत्तराखंड का एक मात्र ऐसा जिला है जिसका विस्तार शिवालिक भाबर और तराई जनपद में है l

प्रमुख झील ताल 

झिलमिल ताल इसका आकर गोलाकार है l

श्यामा ताल से कुछ दूरी पर स्वामी विवेकानन्द आश्रम स्थित है यहाँ झूला मेला भी लगता है l यह रक्षा बंधन को आयोजित होता है वाराही देवी के मदिर परगन में इसमें 4 खाम के लोग भाग लेते है 1चमियाल 2लमगड़िया 2गहड़वाल 4वलकिया 

प्रमुख पर्वत 

एबट माउंट की पहाड़ी 

अन्नपूर्णा पर्वत पर पूर्णागिरि मंदिर है l

प्रशासनिक स्थिति 

उत्तराखंड राज्य का सबसे छोटा जिला है इसकी स्थापना 15 सितम्बर 1997 में हुई थी/यहाँ विधान सभा सीटों की संख्या 2 है लोहाघाट और चम्पावत  ।

चम्पावत के प्रमुख किले और धार्मिक स्थल

चम्पावत में कई प्रमुख ऐतिहासिक किले और धार्मिक स्थल हैं जो इसे पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाते हैं। इनमें बाणासुर किला, राजबुंगा किला, और बाराकोट किला शामिल हैं। बाणासुर किला का स्थानीय नाम “मारकोट” है और यह चम्पावत की पुरानी स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है।

धार्मिक स्थलों में बालेश्वर महादेव मंदिर प्रमुख है, जिसे 10वीं और 12वीं सदी के बीच चंद राजाओं द्वारा बनवाया गया था। इस मंदिर का निर्माण वास्तुकला के उच्चतम मानकों के अनुसार हुआ था, और इसकी नक्काशी में गुजरात और राजस्थान की शैली का प्रभाव देखा जा सकता है। इसके अलावा, पूर्णागिरी मंदिर, सप्तेश्वर मंदिर, और वराही देवी मंदिर भी इस क्षेत्र के प्रमुख धार्मिक स्थल हैं। मायावती आश्रम, जो स्वामी विवेकानंद से जुड़ा है, भी यहाँ स्थित है और ध्यान व साधना के लिए प्रसिद्ध है।

घटोत्कच मंदिर

क्रान्तेश्वर मंदिर 

बालेश्वर महादेव मंदिर मीठा रीठा साहिब 

झूठा मंदिर 

पर्यटन स्थल 

नौ ढुङ्गा घर

एक हथिया नौला 

पाताल रुद्रेश्वर गुफा 

सांस्कृतिक महत्त्व और मेले

चम्पावत का सांस्कृतिक धरोहर भी समृद्ध है। यहां विभिन्न मेले और त्योहार मनाए जाते हैं, जो इस क्षेत्र की धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हैं। प्रमुख मेलों में लड़ीघूरा मेला, मानेश्वर मेला, और श्री पूर्णागिरी मेला शामिल हैं। इनमें से पूर्णागिरी मेला चैत्र नवरात्र के दौरान आयोजित किया जाता है और इसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। चम्पावत के लोग अपने देवी-देवताओं को गहराई से मानते हैं, जिसमें ऐडी देवता और चौमूह देवता प्रमुख हैं। 

बग्वाल  पाषण मेला को असाडी कौथिक व् देवीधुरा मेला के नाम से जाना जाता है l

 

प्रमुख ऐतिहासिक व्यक्तित्व

चम्पावत ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कालू सिंह महरा, चम्पावत के बिसुंग गाँव में जन्मे, उत्तराखंड के पहले स्वतंत्रता सेनानी थे। इन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई और एक गुप्त संगठन का नेतृत्व किया। इसके अलावा, हर्षदेव औली, जिन्हें “काली कुमाऊँ का शेर” कहा जाता था, भी चम्पावत के ही थे और 1930 के जंगलात कानून के खिलाफ आंदोलन में सक्रिय रहे थे।

 

ऊर्जा संसाधन और परियोजनाएं

चम्पावत जिले में कई प्रमुख ऊर्जा परियोजनाएं हैं, जिनमें टनकपुर परियोजना, सप्तेश्वर जल विद्युत परियोजना, और गौरी डैम शामिल हैं। शारदा नहर, जो काली नदी पर स्थित है, 1928 ईस्वी में बनाई गई थी और यह इस क्षेत्र के सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण है। इन परियोजनाओं ने चम्पावत को ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में भी प्रमुख स्थान दिलाया है।

 

चम्पावत न केवल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक महत्व के कारण भी विशेष स्थान रखता है। इसकी समृद्ध विरासत और परंपराएं इसे उत्तराखंड के सबसे प्रमुख जिलों में से एक बनाती हैं। चम्पावत का इतिहास, संस्कृति, और प्राकृतिक सौंदर्य इसे एक अद्वितीय स्थान बनाते हैं, जिसे हर इतिहास प्रेमी और पर्यटक को अवश्य देखना चाहिए।

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