Golu Devta Temple -Ghorakhal

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उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित भवाली से कुछ ही दूरी पर घोड़ाखाल के रमणीय पहाड़ी क्षेत्र में स्थित गोलू देवता मंदिर एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। कुमाऊं क्षेत्र में गोलू देवता को सर्वाधिक लोकमान्यता प्राप्त देवता माना जाता है, जिन्हें न्याय के देवता के रूप में विशेष सम्मान प्राप्त है। गोलू देवता को गोरिया, ग्वाल, और भनरिया नामों से भी जाना जाता है। इस मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी समस्याओं का हल प्राप्त करने और न्याय की उम्मीद से आते हैं।

गोलू देवता का इतिहास और पौराणिक गाथा

गोलू देवता के बारे में एक प्राचीन लोकगाथा प्रचलित है। इन्हें कत्यूरी वंश के राजा झालुराई  के पुत्र थे । गोलू देवता का उद्भव स्थान ( मूल स्थान ) चंपावत माना जाता है, राज्य में चम्पावत, नैनीताल( घोड़ाखाल ), अल्मोड़ा में गोलू देवता के मंदिर स्थित है । कुमाऊं में गोलू देवता को न्याय दिलाने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है, और यह विश्वास किया जाता है कि वे अपने भक्तों की प्रार्थनाओं का तुरंत उत्तर देते हैं।

घोड़ाखाल गोलू देवता मंदिर की स्थापना

घोड़ाखाल स्थित इस प्रसिद्ध मंदिर की स्थापना चंद वंश के शासक बाज बहादुर चंद ने की थी। यहां विशेषकर नवरात्रि के समय श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है, और भक्त जन विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। यहाँ विवाह संस्कार भी संपन्न होते हैं। इसके अतिरिक्त, अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यहाँ हर वर्ष अखंड रामायण का पाठ किया जाता है, जिसमें भक्त बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। मंदिर में स्थित घंटियाँ भक्तों की श्रद्धा का प्रतीक हैं, जो उनकी प्रार्थनाओं के पूरे होने पर अर्पित की जाती हैं। इनमें से एक घंटी नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री गिरिजा प्रसाद कोइराला द्वारा भेंट की गई थी, जो मंदिर की शोभा बढ़ाती है।

नवविवाहित में लोक प्रिय- घोड़ा खाल मंदिर के बारे में मान्यता है की अगर नवविवाहित जोड़ा यहाँ दर्शन के लिए आता है तो उनका वैवाहिक जीवन सात जन्मों तक सफल रहता है अतः नवविवाहित जोड़ों  में यह मंदिर अत्यधिक लोकप्रिय है, नवविवाहित जोड़ों  यहाँ दर्शन के लिए यहाँ आते रहते है l

गोलू देवता के न्याय का ऐतिहासिक संदर्भ

एक प्राचीन लोक कथा के अनुसार, गोलू देवता ने अपनी बहन को न्याय दिलाने के लिए एक कठिन संघर्ष किया। कहा जाता है कि गोलू देवता का मूल स्थान चंपावत है, और उनकी बहन का विवाह महरा गाँव के एक परिवार में हुआ था। दुर्भाग्यवश, उनके पति की मृत्यु हो गई, और उनके देवरों, लटुवा और कलुवा ने उसकी भूमि हड़प ली और उसे कष्ट देने लगे।

व्यथा से दुखी होकर वह अपने मायके, अपने भाई गोरिया के दरबार में पहुँची और न्याय की गुहार लगाई। अपनी बहन की व्यथा सुनकर गोल्ज्यू ने उसे आश्वासन दिया और कहा, “तू वहाँ जा, मैं पाँचवें दिन वहाँ पहुँच जाऊँगा।” अपनी बहन को न्याय दिलाने के संकल्प के साथ, गोलू देवता अपने घोड़े पर सवार होकर अपने साथियों के साथ भीमताल की ओर निकल पड़े। वहाँ पहुँचकर उन्होंने कलुवा और लटुवा को युद्ध में परास्त किया और अपनी बहन को न्याय दिलाया। इस घटना की स्मृति में उनकी बहन भाना ने महर गाँव की ऊँची चोटी पर गोलू देवता का मंदिर स्थापित किया।

श्रद्धा का प्रतीक घंटियों का समृद्ध संग्रह

घोड़ाखाल स्थित गोलू देवता मंदिर में घंटियों का एक विशाल संग्रह है, जो भक्तों की आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है। यह मान्यता है कि जो भी भक्त यहाँ अपनी प्रार्थनाओं के साथ घंटी चढ़ाता है, उसकी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। इस कारण मंदिर के चारों ओर सैकड़ों घंटियाँ लगी हैं, जो इस स्थल को और अधिक दिव्यता प्रदान करती हैं।

 

गोलू देवता मंदिर घोड़ाखाल न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह न्याय और आस्था का प्रतीक भी है। यहाँ भक्त जन अपने दुखों और समस्याओं का हल प्राप्त करने के उद्देश्य से आते हैं। मंदिर की ऐतिहासिकता और यहाँ की लोकगाथाएँ इस स्थल की महत्ता को और बढ़ा देती हैं। गोलू देवता का यह मंदिर न केवल कुमाऊं बल्कि पूरे उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जहाँ भक्त जन न्याय और शांति की कामना लेकर आते हैं।

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