कालसी शिला लेख
साम्राटअशोक मौर्य वंश के शासक थे, वह पहले भारतीय शासक थे , जिसने शिलालेखों के माध्यम से जनता को संदेश दिए संबोधित किया l अशोक के शिलालेख भारत के कई शहरों तथा भारत से बाहर भी प्राप्त हुए हैं आज हम बात कर रहे हैं कालसी शिलालेख की जो अशोक के शिलालेख में से एक है जो उत्तराखंड में देहरादून के पास कालसी नामक स्थान से मिला है l
कालसी स्थान
यह देहरदून से 56 किमी दूर स्थित है, अगर बात की जाय कालसी कस्बे कि तो इसका प्राचीन नाम कालकूट है l
कालसी यमुना और टोंस नदी के संगम पर स्थित है l
कालसी शिलालेख की खोज
शिलालेख की खोज या प्रकाश में लाने का श्रेय अंग्रेज अधिकारी जॉर्ज फॉरेस्ट को जाता है l
कालसी शिलालेख
कालशी शिला लेख एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक शिलालेख है, जो भारत के उत्तरी भाग में उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के कालशी गांव में स्थित है। यह शिलालेख तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के सम्राट अशोक के शासनकाल से संबंधित है। इसे अशोक स्तंभ के रूप में भी जाना जाता है।
कालसी शिलालेख भाषा
कालसी शिलालेख में प्राकृत भाषा का प्रयोग हुआ है हुआ है जबकि इसकी लिपि ब्राह्मी है l इस शिलालेख में हाथी की आकृति भी उत्कीर्ण है तथा जगतमे लिखा हुआ है l
पुलिंद और अपरान्त शब्द
कालसी शिलालेख से हमें यह पता चलता है, कि उस समय यहां के निवासियों के लिए पुलिंद शब्द का प्रयोग होता था, तथा इस क्षेत्र के लिए अपराह्नत शब्द का प्रयोग हुआ है l
शिलालेख की संरचना:
- यह शिलालेख एक बड़ी चट्टान पर उकेरा गया है।
- इसमें मुख्य रूप से प्रजा को अहिंसा और धार्मिक सहिष्णुता के महत्व को समझाया गया है।
शिलालेख का महत्व:
- यह शिलालेख प्रकृति संरक्षण और धर्म-अहिंसा के प्रति सम्राट अशोक के संदेश को प्रकट करता है।
- शिला पर लिखे गए आदेश पाली भाषा और ब्राह्मी लिपि में हैं।
- इसमें सम्राट अशोक द्वारा उनके राजधर्म (धम्म) के अनुसार समाज में नैतिक आचरण, शांति और प्राणियों के प्रति दयालुता का उपदेश दिया गया है।
- अशोक ने अपनी प्रजा को नैतिक जीवन जीने, जीवों के प्रति दया, सच्चाई और सदाचार का पालन करने की शिक्षा दी थी।
ऐतिहासिक महत्व:
- यह शिलालेख अशोक के समय में भारत की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को दर्शाता है।
- यह हमें उस समय के भारतीय समाज के नैतिक मूल्यों और धार्मिक विचारधाराओं की जानकारी देता है।
कालशी शिला लेख भारत के पुरातात्विक और सांस्कृतिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
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