khudbuda ka yudth-dehradun

उत्तराखंड प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए महत्वपूर्ण जानकारी
खुड़बुड़ा का युद्ध का कारण
1790 में जब कुमाऊं पर गोरखाओं का अधिकार हुआ तो हर्ष देव जोशी के कहने पर गोरखाओं ने 1791 में गढ़वाल पर भी आक्रमण किया उस समय गढ़वाल शासक प्रदुमन शाह था गोरखा गढ़वाल को तो उसे समय जीत नहीं पाए क्योंकि नेपाल पर चीनी का आक्रमण हुआ था जिस कारण गोरखा सैनिकों को वापस जाना पड़ा जाने से पहले गोरखाओं सैनिकों ने प्रदुमन शाह के साथ संधि की जिसे लंगूरगढ़ की संधि कहा जाता है ल यह संधि 1792 में हुई थी l
लंगूरगढ़ की संधि 1792
इस संधि के तहत यह तय किया गया की प्रदुमन शाह गोरखाओं को में वार्षिक कर देगा l
राजधानी पर अधिकार
लेकिन श्रीनगर में 1795 में 51 -52 वी का आकाल तथा 1803 विनाशकारी भूकंप आ जान से गढ़वाल राज्य के कई नागरिक उस भूकंप में मारे गए जिस कारण प्रदुमन शाह की आर्थिक दशा खराब हो गई वह गोरखाओं को कर देने में असमर्थ रहा इसी बात का इंतजार गोरखा कर रहे थे उन्होंने राजधानी श्रीनगर पर आक्रमण किया लेकिन प्रदुमन शाह वहां से भाग गया गोरखाओं ने राजधानी श्रीनगर पर अपना अधिकार कर लिया l
प्रदुमन शाह द्वार गुर्जर राजाराय दयाल से सहायता
प्रदुमन शाह के पास सैनिक संख्या कम थी अतः उसने अपने सोने का सिंहासन और आभूषण बेचकर रुड़की लंढोर रियासत के शासक गुर्जर राय दयाल से मदद मांगी राय दयाल ने 12000 सैनिकों को उसकी मदद के लिए भेजी l
खुड़बुड़ा युद्ध मैदान देहरादून
14 मई 1804 को प्रदुमन शाह तथा गोरखाओं की सेना का आमना सामना देहरादून में स्थित खुड़बुड़ा के मैदान में हुआ जिसमें प्रदुमन शाह को गोली लगी और वह वीरगति को प्राप्त हुआ प्रदुमन शाह का पुत्र सुदर्शन शाह भागने में सफल हुआ लेकिन दूसरे पुत्र प्रीतम शाह को गोरखाओं ने बंदी बना लिया l
कुछ इतिहास करो का मानना यह है कि प्रदुमन शाह को गोली काजी रणजीत कुंवर ने मारी थी l
गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने राजा की मृत शरीर पर दुशाला डाल कर डालनवाला के सुजन सिंह रावत के संरक्षण में शव को दहा संस्कार हेतु भेजो था l
14 मई 1804 से 30 नवंबर 1814 तक गढ़वाल पर गोरखा का शासन रहा था l
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