parmar vansh-gadhwal परमार वंश

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परमार वंश (888~1804)

नागपुर गढ़ को पहला गढ़ माना जाता है ।

उप्पूगढ़ के शासक कफफू चौहान ने अजय पाल की अधीनता को स्वीकार नहीं किया था ।

नालगढ़ देहरादून में स्थित था ।

गुजडूगढ़ पौड़ी गढ़वाल में था, गुजडू को गढ़वाल का बारादोली कहा जाता है  ।

उन 52 गढ़ों में शक्तिशाली गढ़ चांदपुरगढ़ था और चांदपुरगढ़ का शासक भानु प्रताप था भानु प्रताप ने अपनी पुत्री का विवाह धार नगरी गुजरात से आए राजकुमार कनक पाल से किया था तथा दहेज में चांदपुर गढ़ का कुछ भाग दान में दिया था ।

कनक पाल ने उसी चांदपुरगढ़ में एक नए वंश की स्थापना करी जिसको परमार वंश, पंवार वंश, शाह वंश के नाम से जाना जाता है ।

परमार वंश का संस्थापक कनक पाल था ।

 परमार वंश की प्रारंभिक राजधानी चांदपुरगढ़ थी, जो आटागाड नदी के किनारे थी ।

सोनपाल परमार वंश का ऐसा शासक था, जो  राजधानी भिलंग घाटी लाया था, यहां शासन करने वाले शासक सोनी भिलंग के साथ कहलाए ।

लखन देव लसन देव परमार वंश का पहला शासक जिसने स्व मुद्रा जारी करी थी मुद्रा जारी करने वाला पहला शासक था।

आनंतपाल परमार वंश का पहला शासक था, जिसका अभिलेख मिला था यह अभिलेख धारशिल नामक स्थान से मिला है ।

जगतपाल परमार वंश का पहला शासक है जिसका रघुनाथ मंदिर से ताम्र अभिलेख मिला है उस अभिलेख से भूमि दान करने के विषय में जानकारी मिलती है ।

अजय पाल परमार वंश का ऐसा शासक है जिसने 52 गढ़ों को एकीकृत किया उनका एकीकरण किया अजय पाल को गढ़पाल गढ़वाल, गढ़वाल का बिस्मार्क गढ़वाल के अशोक जैसे उपनाम नाम से जाना जाता है ।

 अजय पाल परमार वंश का ऐसा शासक हैं, जिसने राजधानी को चांदपुर गढ़ से देवलगढ़ 1512 में उसके बाद श्रीनगर 1517 में स्थानांतरित किया था ।

अजयपाल ही परमार वंश का पहला शासक था जिसने कुमाऊं पर आक्रमण किया था उस समय कुमाऊं का शासक कीर्ति चंद

था ।

श्रीनगर को गढ़वाल की दिल्ली कहा जाता है, आधुनिक श्रीनगर को बसाने का श्रेय कर्नल पो को जाता है ।

सहजपाल के समय अकबर ने एक अन्वेषण दल को गंगा के स्रोत का पता लगाने के लिए भेजा था ।

बलभद्र शाह परमार वंश का पहला शासक था जिसने शाह की उपाधि को धारण किया था शाह की उपाधि किसने दी इस बारे में विद्वानों के अलग-अलग मत हैं ।

 बलभद्र साथ पहला शासक था जिसने मुगलों के साथ संबंध स्थापित किए थे और राजपूत भेजने की प्रथा का प्रारंभ किया था ।

मानशाह परमार वंश का पहला शासक था जिसने तिब्बत पर आक्रमण किया था उस समय तिब्बत का शासक काकावामोर था ।

मानशाह के दरबार में प्रथम यूरोपीय यात्री विलियम फिंच ने गढ़वाल की यात्रा करी थी ।

मानशाह का दरबारी कवि का नाम भरत कवि था, भरत कवि ने मनोदय काव्य की रचना की थी मानोदय काव्य परमार वंश की जानकारी देने वाला प्रथम प्रमाणिक ग्रंथ है ।

श्याम शाह ने भी तिब्बत पर आक्रमण किया था, श्याम शाह ऐसा शासक था, जिसको जहांगीर ने आगरा बुलाकर एक हाथी घोड़ा उपहार दिया था ।

श्याम शाह ऐसा शासक था जिसने चंद वंश के राजकुमार त्रिमल चंद को अपने यहां शरण दी थी गैडगर्दी शासन या आंतरिक विद्रोह के समय उसकी मदद की थी ।

महीपति शाह सबसे अधिक उम्र में परमार वंश की गद्दी पर बैठने वाला शासक था, वह श्याम शाह का चाचा था ।

महीपति शाह को मुगल इतिहासकारों ने अखड  राजा की संज्ञा दी थी ।

महीपति शाह के तीन शक्तिशाली सेनापति थे ।

माधव सिंह भंडारी

लोधी रिखोला

बनवारी दास 

महिपति शाह की पत्नी का नाम रानी कर्णावती था वह पृथ्वीपति शाह की संरक्षिका रही थी गढ़वाल के इतिहास में रानी कर्णावती को नाक कटी रानी के नाम से भी जाना जाता है उन्होंने मुगल सैनिक को हराया और उनकी नाक काट दी थी ।

पृथ्वीपति शाह ने मुगल वंश के दारा शिकोह पुत्र सुलेमान शिकों को अपने यहां शरण दी थी तथा मुगल बादशाह औरंगजेब से लौहा लिया था ।

फतेहपति शाह के शासन काल को परमार वंश का स्वर्णिम काल कहा जाता है, गढ़वाल में सबसे अधिक विस्तृत समाज फतेह पतिशाह का था फतेहपति शाह को गढ़वाल का शिवाजी भी कहा जाता है  वह परमार वंश का एक ऐसा शासक था जिसकी दरबार में नवरत्न थे इसके शासन काल को साहित्य का स्वर्ण काल भी कहा जाता है।

फतेहपति शाह के शासनकाल में गुरु रामराय का उत्तराखंड आगमन हुआ था ।

फतेहपति शाह ने सिखों के अंतिम गुरु गोविंद सिंह से भंगाड़ी का युद्ध लड़ा था ।

उपेंद्र शाह परमार वंश का ऐसा शासक था, जिसकी मृत्यु बग्वाल दिवाली के दिन हुई थी।

 प्रदीप शाह परमार वंश का शासक था, जिसको मित्रता के लिए जाना जाता है इसने चंद वंश के शासक कल्याण चंद की मदद करी थी प्रदीप शाह व कल्याण चंद ने रोहिल्ला के विरुद्ध संयुक्त अभियान किया था।

ललित शाह परमार वंश का ऐसा शासक था जिसने कुमाऊं पर आक्रमण किया था हर्ष देव जोशी के आमंत्रण पर तथा अपने पुत्र प्रदुमन शाह को कुमाऊ की गद्दी पर बैठाया था ।

 प्रदुमन शाह गढ़वाल का अंतिम शासक था

प्रदुमन शाह के समय गढ़वाल में इक्कवनी,  बावनी का आकाल पड़ा था ।

 प्रदुमन शाह के समय ही 1803 में विनाशकारी भूकंप आया था जिसमें गढ़वाल शासक अजयपाल का भवन क्षतिग्रस्त हो गया था ।

 प्रदुमन शाह के समय गोरखा ने गढ़वाल पर आक्रमण किया था 14 मई 1804 को खुडबुड़ा के मैदान में युद्ध लड़ा गया था प्रदुमन शाह व गोरखा सेनाओं के बीच इस युद्ध में प्रदुमन शाह वीरगति को प्राप्त हुआ था।

1804 से 1814 तक गढ़वाल में गोरखा का शासन रहा जिस समय गोरखा ने गढ़वाल पर आक्रमण किया था उस समय नेपाल का शासक विक्रम शाह था ।

ब्रिटिश शासन का उत्तराखंड में अधिकार हो जाने के बाद ब्रिटिश शासक ने गढ़वाल शासक सुदर्शन शाह की राजधनी श्रीनगर पर अपना अधिकार कर लिया था सुदर्शन शाह को टिहरी का क्षेत्र दे दिया था और सुदर्शन शाह ने उस टिहरी वाले क्षेत्र में टिहरी रियासत की नीव रखी थी 28 दिसंबर 1815 में ।

28 दिसंबर को टिहरी रियासत दिवस  मनाया जाता है ।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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