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शास्त्रीय भाषा का दर्जा क्या है?
केंद्र सरकार ने 2004 में ‘शास्त्रीय भाषा’ की श्रेणी बनाई थी। इसका उद्देश्य उन भाषाओं को मान्यता देना था जो न केवल प्राचीन साहित्य और सांस्कृतिक धरोहर की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि जिनकी प्राचीनता 1500 से 2000 वर्षों तक हो। शास्त्रीय भाषा के दर्जा मिलने के लिए कुछ मानदंड होते हैं:
- प्राचीनता: भाषा का कम से कम 1500 से 2000 वर्षों पुराना इतिहास होना चाहिए।
- समृद्ध साहित्य: भाषा का अपना प्राचीन और समृद्ध साहित्य होना चाहिए, जिसमें ग्रंथ, कविताएं, नाटक और अन्य साहित्यिक रचनाएं शामिल हों।
- सांस्कृतिक धरोहर: भाषा का समाज में गहरा सांस्कृतिक प्रभाव होना चाहिए।
शास्त्रीय भाषाओं की सूची:
भारत में अब कुल 11 शास्त्रीय भाषाएं हैं, जिनकी सूची नीचे दी गई है:
क्रम संख्या | भाषा | वर्ष |
---|---|---|
1 | तमिल | 2004 |
2 | संस्कृत | 2005 |
3 | तेलुगु | 2008 |
4 | कन्नड़ | 2008 |
5 | मलयालम | 2013 |
6 | उड़िया | 2014 |
7 | मराठी | 2024 |
8 | पाली | 2024 |
9 | प्राकृत | 2024 |
10 | असमिया | 2024 |
11 | बंगाली | 2024 |
शास्त्रीय भाषा का महत्व
शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से कई महत्वपूर्ण लाभ होते हैं। सबसे पहले, इससे उस भाषा और उससे संबंधित साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण होता है। डिजिटल माध्यमों के जरिए प्राचीन ग्रंथों और रचनाओं का डिजिटलीकरण किया जाता है, जिससे आने वाली पीढ़ियां उस धरोहर को समझ और सराह सकें। इसके अलावा, इस दर्जे के जरिए भाषा को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मान्यता और प्रतिष्ठा मिलती है।
सांस्कृतिक संरक्षण की दिशा में कदम
भारत की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को बनाए रखने के लिए यह कदम महत्वपूर्ण है। शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त करने के बाद, उन भाषाओं के साहित्य और संस्कृति को बचाने के लिए विशेष प्रयास किए जाते हैं। इसके अलावा, यह उन भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए सरकारी और शैक्षिक संस्थानों को प्रोत्साहित करता है।
निष्कर्ष
मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलना भारतीय भाषाओं के सम्मान और संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। यह निर्णय भारतीय समाज में भाषाई और सांस्कृतिक विविधता के महत्व को रेखांकित करता है और आने वाली पीढ़ियों को उनके धरोहर से परिचित कराने के प्रयास को गति देता है। भारत की शास्त्रीय भाषाएं न केवल हमारे अतीत की धरोहर हैं, बल्कि यह हमारे भविष्य के लिए भी प्रेरणा का स्रोत हैं
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