veerchandr singh garwali biography

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वीर चंद्र सिंह गढ़वाली उर्फ चंद्र सिंह भंडारी   अदम्य साहस का प्रतीक

 

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में साहस, सत्य और दृढ़ता का एक अद्वितीय प्रतीक है। उनका जन्म 25 दिसंबर 1891 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के मेसन, पट्टी चौथान, तहसील थलीसैण में हुआ था।

इनका मूल नाम चंद्र सिंह भंडारी था,   गढ़वाली समाज में जन्मे चंद्र सिंह ने अपने जीवन में वो महान कार्य किए, जिन्हें आज भी हर भारतीय गर्व के साथ याद करता है। उनका जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सैनिक और नागरिक के रूप में सेवा का अद्वितीय उदाहरण है।

प्रारंभिक जीवन और सेना में योगदान

वीर चंद्र सिंह का जीवन सामान्य सैनिक से लेकर राष्ट्रीय नायक बनने की एक प्रेरणादायक यात्रा रही है। उन्होंने ब्रिटिश भारतीय सेना में भर्ती होकर विश्व युद्धों में भाग लिया, लेकिन सेना में सेवा के दौरान उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के असली चेहरे को करीब से देखा। सेना में रहते हुए भी, उन्होंने हमेशा भारतीयों के साथ हो रहे अन्याय को महसूस किया, जिससे उनके मन में ब्रिटिश शासन के प्रति असंतोष बढ़ता गया।

उनका असली शिक्षक उनके द्वारा किए गए विस्तृत और विविध अनुभव थे, जो उन्होंने सेना में रहते हुए अपनी लंबी और व्यापक यात्राओं से अर्जित किए थे। लेकिन असली परीक्षा का समय तब आया, जब उन्हें पेशावर के किस्साखानी बाजार में सत्याग्रहियों पर गोली चलाने का आदेश मिला।

पेशावर की घटना: गढ़वालियों का सीज फायर 

वीर चंद्र सिंह को पेशावर कांड का नायक कहा जाता है l

23 अप्रैल 1930 का दिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया। उस दिन पेशावर के किस्साखानी बाजार में ब्रिटिश हुकूमत ने निहत्थे पठानों पर गोली चलाने का आदेश दिया। उस समय चंद्र सिंह गढ़वाली और उनके साथ गढ़वाल राइफल्स के जवानों को इन निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का हुक्म दिया गया था।

जब ब्रिटिश कमांडर रिकेट्स  ने आदेश दिया, “गढ़वाली, तीन राउंड फायर,” तो वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने उस आदेश को ठुकरा दिया। उन्होंने अपने जवानों को आदेश दिया, “गढ़वाली, सीज फायर,” और जवानों ने अपनी बंदूकें जमीन पर रख दीं। यह निडरता और साहस का अद्वितीय प्रदर्शन था। ब्रिटिश अधिकारियों के भारी दबाव और जान से मारने की धमकियों के बावजूद, वीर चंद्र सिंह और उनके जवानों ने अहिंसक प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने से इनकार कर दिया।

यह घटना स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के इस साहसिक कदम ने साबित कर दिया कि भारतीय सैनिकों के मन में स्वतंत्रता के लिए कितनी गहरी भावना थी। उनके इस कृत्य ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नया जोश भर दिया और यह स्पष्ट संदेश दिया कि भारतीय सैनिक अब ब्रिटिश हुकूमत के अन्याय के खिलाफ खड़े हो सकते हैं।

महात्मा गांधी से प्रेरणा

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली को महात्मा गांधी से गहरा प्रेरणा मिली। 1929 में जब महात्मा गांधी उत्तराखंड आए, तब चंद्र सिंह गढ़वाली ने बागेश्वर में आयोजित एक सभा में भाग लिया। गांधीजी ने उनकी सेना की टोपी देखकर कहा कि उन्हें सेना की टोपी से डर नहीं लगता। इस पर गढ़वाली ने उत्तर दिया कि अगर गांधीजी चाहें तो वे उनकी टोपी बदल सकते हैं। गांधीजी ने उन्हें खादी की टोपी दी, और उस दिन गढ़वाली ने संकल्प लिया कि वे इस टोपी के सम्मान को कभी कलंकित नहीं होने देंगे। इस घटना ने उनके जीवन में अहिंसक क्रांति के प्रति एक नया दृष्टिकोण दिया।

स्वतंत्रता संग्राम और जेल यात्रा

पेशावर कांड के बाद, अंग्रेजी हुकूमत ने चंद्र सिंह और उनके साथियों को विद्रोह का दोषी मानते हुए मृत्युदंड की सजा सुनाई, लेकिन वकील मुकंदी लाल की पैरवी से उनकी सजा को 14 वर्ष के कारावास में बदल दिया गया। 26 सितंबर 1941 को वे जेल से रिहा हुए, लेकिन उन्हें गढ़वाल जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके बाद वे महात्मा गांधी से मिले और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने लगे। 1942 से 1945 तक उन्हें पुनः जेल भेजा गया।

महात्मा गांधी के शब्द

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के साहस और देशप्रेम की प्रशंसा करते हुए कहा, “यदि मेरे पास एक और चंद्र सिंह गढ़वाली होता, तो भारत बहुत पहले ही स्वतंत्र हो गया होता।” यह बयान चंद्र सिंह गढ़वाली के अद्वितीय साहस और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान का प्रमाण है।

वीर चंद्र सिंह की समाधि 

वीर चंद्र सिंह जी की मृत्यु 1 अक्टूबर 1979 को हुई थी  इनकी समाधि उत्तराखंड का पामीर कहे जाने वाले दूधातोली में कोडियाबगढ़ नामक स्थान पर  है  यहाँ पर प्रतिवर्ष 12 जून को इनकी स्मृति में मेला लगता है l

वीर चंद्र सिंह को  सम्मान 

मोतीलाल नेहरू ने पेशावर कांड के दिन को गढ़वाल दिवस मनाने की घोषणा करी थी l

1994 ई में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी के नाम पर डाक टिकट जारी हुआ

23 अप्रैल 1994 को वीरचंद सिंह गढ़वाली पर डाक टिकट जारी हुआ था l

उत्तराखंड सरकार दुवारा 1 जून 2002 में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली पर्यटन स्वरोजगार योजना की शुरुवात की गयी है l

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली गवर्नमेंट मेडिकल साइंस एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट संस्थान श्रीनगर गढ़वाल में स्थित है ल इसकी स्थापना 2008 में हुई थी l

निष्कर्ष

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने अपने जीवन में न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी, बल्कि भारतीय सैनिकों के मन में देशभक्ति की भावना को भी जाग्रत किया। उनका जीवन हमें सिखाता है कि साहस, सत्य और दृढ़ता से कोई भी चुनौती पार की जा सकती है। उनके योगदान को इतिहास में हमेशा गर्व के साथ याद किया जाएगा।

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