शैलेश मटियानी: उत्तराखंड के आंचलिक उपन्यासकार
शैलेश मटियानी, जिन्हें उत्तराखंड का आंचलिक उपन्यासकार कहा जाता है, आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर थे। उनका जन्म 14 अक्टूबर 1931 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा में हुआ। उनका वास्तविक नाम रमेश मटियानी था, लेकिन साहित्यिक दुनिया में वे शैलेश मटियानी के नाम से प्रसिद्ध हुए। 1950 से ही उन्होंने कविताओं और कहानियों की रचना शुरू कर दी थी, जिसमें उन्होंने सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक पहलुओं को गहराई से चित्रित किया।
प्रारंभिक जीवन और साहित्यिक यात्रा
शैलेश मटियानी का साहित्यिक करियर 1950 के दशक में आरंभ हुआ। उनकी आरंभिक कहानियाँ “रंग महल” और “अमर कहानी” पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। 1951 में उन्होंने अपने दो लघु उपन्यास “शक्ति ही जीवन है” और “दो राहा” लिखे, जिससे उनकी साहित्यिक यात्रा को एक नई दिशा मिली। 1961 में उनका पहला कहानी संग्रह “मेरी 33 कहानियाँ” प्रकाशित हुआ, जिसने उन्हें एक सशक्त कथाकार के रूप में स्थापित किया।
प्रमुख रचनाएँ
शैलेश मटियानी की कहानियाँ और उपन्यास उनके अनुभवों और समाज के प्रति उनकी गहरी समझ को दर्शाते हैं। उनके प्रमुख उपन्यासों में “बोरीवली से बोरीबंदर” विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिसमें उन्होंने मुंबई की अपराध दुनिया का चित्रण किया है। “आकाश कितना अनंत है” उनके साहित्य का एक और महत्वपूर्ण उपन्यास है, जिसमें प्रेम और उसके टूटने की पीड़ा को संवेदनशील तरीके से पेश किया गया है।
उनकी अन्य प्रसिद्ध रचनाओं में “मुठभेड़”, “कबूतर खाना”, “एक मुठ सरसों”, “भागे हुए लोग”, “चौथी मुट्ठी”, “छोटे-छोटे पक्षी”, “52 नदियों का संगम”, और “चंद औरतों का शहर” प्रमुख हैं। इन उपन्यासों में मटियानी ने समाज की विविध समस्याओं, संघर्षों, और भावनात्मक पहलुओं को बड़ी कुशलता से उकेरा है।
कहानियाँ और यात्रा संस्मरण
शैलेश मटियानी ने अपनी कहानियों के माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाने की कोशिश की। उनकी प्रमुख कहानियों में “डब्बू मलंग”, “रहमतुल्लाह”, “पोस्टमैन”, “प्यास और पत्थर”, “दो दुखों का एक सुख”, “चील”, “अर्धांगिनी”, “जुलूस”, और “जंगल में मंगल” शामिल हैं। ये कहानियाँ समाज के हाशिये पर खड़े लोगों के संघर्ष और जीवन की कठोर सच्चाइयों को उजागर करती हैं।
उनका यात्रा संस्मरण “पर्वत से सागर तक” भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसमें उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभवों को बेहद रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है।
सम्मान और पुरस्कार
शैलेश मटियानी को हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उनके उपन्यास “महाभोज” के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा प्रतिष्ठित प्रेमचंद पुरस्कार प्राप्त हुआ। इसके अलावा, उनके उपन्यास “मुठभेड़” के लिए उन्हें फणीश्वर नाथ रेणु पुरस्कार से नवाजा गया।
शैलेश मटियानी पुरस्कार
राज्य सरकार द्वारा शैलेश मटियानी के सम्मान में शैलेश मटियानी पुरस्कार की शुरुआत 2009 में की गयी थी,यह पुरस्कार प्रतिवर्ष राज्य में शिक्षा के क्षेत्र मेंउत्कृष्ट कार्य करने वाले शिक्षकों को दिया जाता है l
पत्रकारिता और निबंध
शैलेश मटियानी साहित्यिक लेखन के साथ-साथ पत्रकारिता में भी सक्रिय रहे। उन्होंने “जनपक्ष” और “विकल्प” जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया। उनके निबंध संग्रह “कागज की नाव” और “कभी कभार” उनके विचारशील दृष्टिकोण को प्रदर्शित करते हैं।
शैलेश मटियानी की रचनाएँ आज भी साहित्य जगत में प्रासंगिक हैं। उनकी कहानियाँ और उपन्यास समाज के ताने-बाने और उसमें व्याप्त जटिलताओं को बहुत ही मार्मिकता से पेश करते हैं। उनके साहित्य में एक गहरी संवेदनशीलता और मानवीयता का भाव है, जो पाठकों को आत्मचिंतन की ओर प्रेरित करता है।
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