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कण्वाश्रम उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के कोटद्वार से लगभग 14 किलोमीटर दूर, मालिनी नदी के तट पर स्थित एक ऐतिहासिक और पवित्र स्थल है। यह स्थान प्राचीन काल में विद्या अध्ययन और वैदिक शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र हुआ करता था। इस स्थान का उल्लेख महाकाव्यों में भी मिलता है और यहां का गौरवशाली इतिहास हज़ारों वर्षों पुराना है। लगभग 5500 साल पूर्व, महर्षि कण्व ने इस आश्रम की स्थापना की थी, जो ब्रह्मर्षि कश्यप के पुत्र थे।

स्थान की महिमा और ऐतिहासिकता
कण्वाश्रम को राजा दुष्यंत और शकुंतला के प्रेम प्रसंग के लिए भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी स्थान पर उनके पुत्र, राजा भरत का जन्म हुआ था। महाभारत में वर्णित इसी राजा भरत के नाम पर हमारे देश का नाम “भारत” पड़ा। इस स्थान का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व अद्वितीय है, और इसकी पवित्रता का अनुभव यहाँ आने वाले हर व्यक्ति को होता है।

 

कण्वाश्रम मणिकूट और हेमकूट पर्वतों के बीच बसा है। प्रकृति की गोद में स्थित यह स्थान शांति, ध्यान और शिक्षा का केंद्र रहा है।

महाकवि कालिदास और अभिज्ञान शाकुंतलम
महाकवि कालिदास ने कण्वाश्रम में ही अपनी शिक्षा ग्रहण की थी। यहीं पर उन्होंने अपने प्रसिद्ध नाटक “अभिज्ञान शाकुंतलम” की रचना की, जो राजा दुष्यंत और शकुंतला की कथा पर आधारित है। कण्वाश्रम की प्राकृतिक सुंदरता से प्रभावित होकर कालिदास ने इसे “किसलय प्रदेश” कहा था।

 

कण्वाश्रम की खोज और पुनर्निर्माण

कण्वाश्रम की खोज से जुड़ी एक दिलचस्प घटना है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जब रूस यात्रा पर गए थे, तो उन्हें “अभिज्ञान शाकुंतलम” की कथा पर आधारित एक फिल्म दिखाई गई। इसके बाद, रूस के प्रधानमंत्री ने पंडित नेहरू से इस ऐतिहासिक स्थल के बारे में जानकारी मांगी, लेकिन नेहरू जी खुद इस स्थान के बारे में अनभिज्ञ थे। उन्होंने भारत लौटकर इस स्थल की खोज का निश्चय किया। विद्वानों और पुरातत्वविदों की

सहायता से इस स्थान का पता लगाया गया।

1955 में बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर तत्कालीन वन मंत्री श्री जगमोहन सिंह नेगी ने यहां एक स्मारक का शिलान्यास किया, ताकि इस महत्वपूर्ण स्थल का संरक्षण हो सके।

 

कोटद्वार

कोटद्वार, गढ़वाल क्षेत्र का प्रमुख नगर है और इसे “गढ़वाल का प्रवेश द्वार” कहा जाता है। यह नगर खोह नदी के तट पर स्थित है और इसका प्राचीन नाम मोरध्वज था। कोटद्वार उत्तराखंड के औद्योगिक विकास के लिए भी जाना जाता है, इसलिए इसे “स्टील सिटी ऑफ उत्तराखंड” भी कहा जाता है। यहां स्थित सिद्धबली मंदिर हनुमान जी का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है, जहां भक्तगण बड़ी संख्या में आते हैं।

कोटद्वार पौड़ी गढ़वाल का एकमात्र रेलवे स्टेशन भी है, जो इसे राज्य के अन्य हिस्सों से जोड़ता है। कोटद्वार को 2017 में नगर निगम बनाया गया था हाल ही में, कोटद्वार नगर निगम का नाम “कण्वनगरी कोटद्वार” करने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी गई है, ताकि इस ऐतिहासिक स्थल को उसकी सही पहचान मिल सके

 

      कोटद्वार को बसाने का श्री पंडित धनीराम मिश्र को जाता है l 

     कोटद्वार को गढ़वाल का प्रवेश द्वार एवं  स्टील सिटी आफ उत्तराखंड भी कहा जाता है l

    कोटद्वार खोह नदी के तट पर स्थित है l

   कोटद्वार का प्राचीन नाम मोरध्वज है l

   हनुमान जी का सिद्धबली मंदिर कोटद्वार में स्थित है l

  कोटद्वार पौड़ी गढ़वाल का एकमात्र रेलवे स्टेशन है l

  कोटद्वार नगर निगम का नाम कण्वनगरी कोटद्वार करने की प्रस्ताव को मंजूरी भी दे दी गई है l

कण्वाश्रम और कोटद्वार दोनों ही भारतीय संस्कृति, इतिहास और शिक्षा के महत्वपूर्ण केंद्र रहे हैं। इन स्थानों का महत्व केवल ऐतिहासिक नहीं है, बल्कि वर्तमान में भी यह धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। कण्वाश्रम न केवल प्राचीन शिक्षा का केंद्र था, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की समृद्ध धरोहर को भी दर्शाता है

 

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