हर्षदेव जोशी ( harsh-dev-joshi )
* हर्षदेव जोशी को कुमांऊ के इतिहास में कूट राजनीतज्ञ, कुमांऊ का चाणक्य आदि कई नामों से जाने जाते है ।
* कुमाँऊ का शिवाजी भी कहा जाता है ।
* किंग मेकर भी कहा जाता है ।
* एटकिंसन- स्वार्थ पूर्ण देश द्रोही कहा था
* राहुल संकृत्यान ने इन्हें विभीषण की संज्ञा दी थी ।
* हर्षदेव जोशी पिता का नाम शिव देव जोशी था इनको कुमांऊ का बैरम खां कहा जाता है ।
* शिव देव जोशी ने कुमांऊ के इतिहास में रोहिला को युद्ध में पराजित किया था, यह कल्याण चंद पंचम के मंत्री रहे थे तथा उसके पुत्र दीपचंद के संरक्षक भी रहे थे ।
* जिस समय कल्याण चंद पंचम मृत्यु सया पर थे तो उन्होंने अपने मंत्री शिव देव जोशी से वचन लिया था मेरे मरने के बाद मेरे पुत्र दीपचंद को ही कुमांऊ की राज गद्दी पर बैठना इस वचन को पालन करते हुए शिव देव जोशी ने दीपचंद को गद्दी पर बैठ्या था जिस तरह अकबर के संरक्षक की भूमिका बैरम खां ने निभाई उसी तरह कुमांऊ चंद वंश के इतिहास में शिव देव जोशी ने बैरम खां की तरह भूमिका अदा करी अत:इन्हें कुमांऊ के बैरम खां की संज्ञा दी जाती है ।
* दीपचंद के समय शिव देव जोशी संरक्षक रहे तो इनके शत्रु अधिक हो गये थे, तो इन्हें शत्रु द्वारा षड्यंत्र रचके इनको व इनके दो पुत्र की हत्या काशीपुर में कर दी गयी थी ।
* पानीपत के तीसरे युद्ध जो 1761 में लड़ा गया था मराठा व अहमदशाह अब्द्दली के मध्य उस युद्ध में कुमांऊ के शासक दीपचंद के मंत्री हरिराम उपमंत्री बीरबल नेगी ने भाग लिया था मराठों के विरुद्ध
* इस युद्ध में नजीबाबाद सहारनपुर के नवाब नजीब्दुल्ला ने भी युद्ध में भाग लिया था, जब वह युद्ध में भाग लेने गये थे तो अपने राज्य शिवदेव जोशी को सौंप गये थे, शिवदेव जोशी ने अपने पुत्र हर्षदेव जोशी जो उस समय मात्र 16 वर्ष का युवा था उसे वहां का प्रशासक नियुक्त किया था ।
* शिव देव जोशी की मृत्यु के बाद उसका पुत्र हर्षदेव जोशी को मंत्री पद दिया गया उस समय कुमांऊ शासक दीपचंद था दीपचंद के समय राज दरबार में षड्यंत्र का दौर शुरू हो गया था क्योंकि दीपचंद की रानी श्रृगांर मंजरी ने राज- काज के कार्य में उसने अपना हस्ताक्षेप शुरू कर दिया, उसने मोहन चंद नामक व्यक्ति जो चंदो का रिश्तेदार था उसे महत्वपूर्ण पद दिया बाद मोहन चन्द द्वारा मौका पाकर श्रृगांर मंजरी की हत्या कर दी गयी थी, दीपचंद व उसके पुत्र तथा हर्षदेव जोशी को सीराकोट जेल में बंद कर दिया बाद में दीपचंद व उसके पुत्र की हत्या कर दी थी ।
* हर्ष देव जोशी जेल से भागने में सफल रहा वह भागकर गढ़वाल चला गया उस समय गढ़वाल शासक ललित शाह था उसने गढ़वाल शासक ललित शाह को कुमांऊ की राजनैतिक स्थिति तथा राजदरबार में हो रहे षड्यंत्र से अवगत कराया व कुमांऊ पर आक्रमण करने को कहा ललित शाह ने हर्ष देव जोशी के कहने पर कुमांऊ पर आक्रमण किया कुमांऊ विजित हो जाने पर हर्ष देव जोशी के सहयोग से अपने पुत्र प्रधुमन शाह को कुमांऊ की गद्दी पर बैठ्या प्रधुमन शाह, प्रधुमनशाह चंद के नाम से दीपचंद के दत्तक पुत्र के रूप में कुमांऊ की गद्दी पर बैठा, उत्तराखंड के इतिहास में प्रधुमन शाह एक मात्र ऐसा शासक हुआ जो गढ़वाल और कुमांऊ की राज गद्दी पर बैठा ।
* ललित शाह जब गढ़वाल वापस जा रहा था तो मार्ग में उसकी मृत्यु हो गयी थी उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र गढ़वाल की गद्दी पर बैठा ।
* लेकिन कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गयी फिर प्रधुमन शाह कुमांऊ की सत्ता हर्ष देव जोशी के हाथ सौप अपने पैतृक राज्य गढ़वाल चला गया ।
* हर्ष देव जोशी ने कुमांऊ की गद्दी पर शिवचंद को बैठाया, लेकिन मोहन चंद पुन: कुमांऊ की सत्ता वापस पाने का प्रयास करता है कुछ समय बाद वह युद्ध में हर्ष देव जोशी को हराकर कुमांऊ की सत्ता वापस पा लेता है ।
* हर्ष देव जोशी गढ़वाल शासक प्रधुमन शाह से मदद मांगता है, लेकिन प्रधुमन शाह ने इस बार सहायता देने से मना कर दिया इसके बाद हर्ष देव जोशी बरेली के नवाब मिर्जा अली बेग की शरण में चला गया और गोरखाओं के संपर्क किया गोरखाओं को पत्र लिखकर उत्तराखंड पर आक्रमण करने को प्रेरित किया ।
* गोरखाओं ने 1790 में हर्ष देव जोशी की सहायता से कुमांऊ पर आक्रमण किया कुमांऊ चन्द वंश के अन्तिम राजा महेंद्र चंद को युद्ध में हरा कर कुमांऊ पर अधिकार कर लिया ।
* 1791 में हर्ष देव जोशी ने गोरखाओं को गढ़वाल आक्रमण करने के लिये उकसाया था, लेकिन नेपाल पर चीन ने आक्रमण कर दिया अत: गोरखाओं को गढ़वाल से जाना पड़ा उन्होंने गढ़वाल शासक प्रधुमन शाह के साथ लंगूरगढ़ की संधि करी उसे अपना कर्द राज्य बनाया था ।
* बाद में गोरखाओं द्वारा हर्ष देव जोशी को उचित मान सम्मान न दिये जाने पर तथा उसके पुत्र जयानारायण की थापा वंश के सरदार ने हत्या कर दी थी ।
* हर्ष देव जोशी साधु के वेष में हरिद्वार भी रहे गोरखाओं द्वारा कुमांऊ की जनता पर अत्याचार किये गये तथा कई प्रकार के कर वसूले गये इन अत्याचार से कुमांऊ की जनता को मुक्त करने के लियेउन्होंने ब्रिटिश एजेंट डब्लू फ्रेजर से मुलाकात की उत्तराखंड की स्थिति से अंग्रेजों को अवगत कराया अंग्रेजों व गोरखाओं के बीच साम्राज्य विस्तार को लेकर संघर्ष प्रारम्भ हो चूका था हर्ष देव जोशी ने अंग्रेजों की सहायता की थी ।
* हर्ष देव जोशी ने महरा, फर्त्याल व तडागी सूबेदरों को अंग्रेजों का साथ देने को कहा अंग्रेजों व गोरखाओं के बीच निर्णायक युद्ध खलंगा युद्ध(देहरादून) व लालमंडी युद्ध(अल्मोड़ा) लड़ा गया जिसने उत्तराखंड से गोरखा साम्राज्य के पतन की कहानी लिखी लालमंडी युद्ध के समय हर्षदेव जोशी भी अंग्रेजों के साथ था ।
* अंग्रेजों व गोरखाओं दोनों के बीच संधि हुई संधि अनुसार गोरखा शीघ्र ही उत्तराखंड छोड़ देंगे ।
*, इस तरह कुमांऊ में गोरखा को हराकर अंग्रेजों ने उत्तराखंड पर अपनी सत्ता कायम करी और ब्रिटिश युग का आरम्भ हुआ हर्षदेव जोशी ने अंग्रेजों सहायता कर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई अत: फ्रेजर ने हर्ष देव जोशी को राजाओं का निर्माता तथा कुमांऊ का अर्ल ऑफ वारविक की संज्ञा दी ।
* हर्षदेव जोशी की मृत्यु 1815 में हुई थी ।
9 टिप्पणियाँ
Hemant Kumar · नवम्बर 20, 2020 पर 6:19 अपराह्न
Very good knowledgeble. Topics for uttrakhand GK
Guruji · नवम्बर 20, 2020 पर 7:57 अपराह्न
thanks
Saif ANSHARI · दिसम्बर 7, 2020 पर 10:36 अपराह्न
aapne bahut easy kar dia is topic ko thanku sir
Guruji · दिसम्बर 8, 2020 पर 7:53 अपराह्न
most welcome
Jagdish Prasad · नवम्बर 20, 2020 पर 6:36 अपराह्न
Very good knowledge about uk G. k for any government job.
Guruji · नवम्बर 20, 2020 पर 7:57 अपराह्न
thanks
Kamlesh kumar · नवम्बर 20, 2020 पर 7:18 अपराह्न
Subab sirji. 👌👌
Guruji · नवम्बर 20, 2020 पर 7:57 अपराह्न
thanks
Guruji · नवम्बर 21, 2020 पर 12:20 अपराह्न
thanks